केदारनाथ में ऐतिहासिक रामकथा वृत्तांत

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विगत 2-10 अगस्त 2025 को पवित्र केदारनाथ धाम (11वां ज्योतिर्लिंग) में चैतन्य गोशाला द्वारा मानस शंकराचार्य शीर्षक पर एक नौ दिवसीय रामकथा का आयोजन हुआए जिसमें भारत और विदेश से आए 350 से अधिक साधक इस अनूठे आध्यात्मिक समागम में सम्मिलित हुए। चैतन्य गोशाला की अन्नदान सेवा इस आयोजन का मुख्य अंग रही। कथा के नेतृत्व का श्रेय पुणेए महाराष्ट्र के मानस किंकर श्री रविंद्र पाठक जी (रविदादा) जो 18वीं शताब्दी के संत श्री गोंदवलेकर महाराज के अनुयायी हैं को जाता है। कथा के नेतृत्व का श्रेय पुणे, महाराष्ट्र के मानस किंकर श्री रविंद्र पाठक जी (रविदादा), जो 18वीं शताब्दी के संत श्री गोंदवलेकर महाराज के अनुयायी हैं, को जाता है। कथा प्रारंभ होने से पूर्व काशी विद्वत परिषद के द्वारा शंकराचार्य ज्योर्तिमठ पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी के करकमलों से रविदादा को मानस किंकर की उपाधि से सम्मानित कराया गया। इससे पूर्व यह गौरव केवल तीन मराठी संतों को प्राप्त हुआ है। यह उपाधि इस कथा के महत्व और उनके प्रयास को और अधिक ऊँचाई प्रदान करती है। रविदादा के अल्प जीवनकाल में किए गए असाधारण संकल्प कार्य को उजागर करती हुई, यह रामकथा वास्तव में जगद्गुरु शंकराचार्य को श्रद्धांजलि स्वरूप थी, जो कि केदारनाथ में उनके समाधि स्थल के पास मानस किंकर रवींद्र पाठक जी द्वारा प्रस्तुत की गई थी। केदारनाथ महादेव और शंकराचार्य दोनों ही इन ईमानदार प्रयासों को देखकर जरूर प्रसन्न हुए होंगे।
केदारनाथ की यह कथा रविदादा के बारहों ज्योतिर्लिंगों पर रामकथा आयोजन के संकल्प का हिस्सा थी। अब तक यह ग्यारह स्थानों पर पूर्ण हो चुकी है। अंतिम कथा घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पर 25 अक्टूबर से 2 नवंबर 2025 तक मंदिर के समीप विशाल पंडाल में आयोजित होगी। इसके पश्चात श्रद्धालु नेपाल जाकर पशुपतिनाथ कथा में सम्मिलित होंगे। इस आयोजन की विशेषता यह थी कि दशकों बाद इस रामकथा का मंचन मंदिर के प्रांगण के बिल्कुल समीप संभव हो सका। कथा पूरी तरह हिंदी भाषा में आत्मसात करती हुई परमात्मा के सानिध्य में एक अद्भुद अलौकिक समायोजन प्रस्तुत कर रही थी। प्रतिदिन कार्यक्रम का आरंभ काकड़ आरती रुद्राभिषेक और महादेव नाम स्मरण और गूढ चिंतन से होता था जिसके बाद कथा श्रवण से न केवल श्रद्धालु बल्कि स्थानीय लोग और पुजारी भी लाभान्वित हुए। शरीर और मन दोनों की तृप्ति के लिए नौ दिनों तक करीब 5000 लोगों के लिए लगातार प्रसाद और भोजन वितरण का कार्यक्रम भी सुचारु रूप से जारी रहा। कठिन मौसम और प्राकृतिक चुनौतियों के बावजूद यह आयोजन निर्विघ्न संपन्न हुआ मानो कि स्वयं महादेव की कृपा और छत्रछाया में यह सब घटित हो रहा हो। कथा के बीच एक विशेष क्षण तब आया जब वह संत स्वयं पधारे जो पिछले बारह वर्षों से केदारनाथ में तपस्या कर रहे हैं। कठोर हिमपात और कठिन परिस्थितियों में महादेव का स्मरण करते इन तपस्वियों का आशीर्वाद मिलना आयोजन की दिव्यता का प्रतीक था। उन्होंने ब्रह्मकमल का प्रसाद भेंट किया जो उतना ही दुर्लभ है जितना कि इस आयोजन में सम्मिलित होना।

मानस शंकराचार्य विषय ने आदि शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन और रामचरितमानस की भक्ति भावना को सुंदरता से जोड़ा। रविदादा ने 1) सगुण से निर्गुण भक्ति की यात्रा 2) शंकराचार्य द्वारा सनातन धर्म का पुनरुत्थान 3) चार मठों की स्थापना 4) भक्ति ज्ञान और सेवा के समन्वय को समझाया। उन्होंने बाल शंकर से जगद्गुरु शंकराचार्य बनने की अल्प किंतु असाधारण 32 वर्षीय यात्रा का भी स्मरण कराया। साथ ही श्रीराम और शंकराचार्य के जीवन में समानताएँ उजागर कीं कठिनाइयों और चुनौतियों के बावजूद दोनों ही आध्यात्मिक मार्ग से कभी भी विचलित नहीं हुए। निषाद, माधव, सोहम, धवल, अनिकेत और अन्य कलाकारों ने भजन, बांसुरी और कीर्तन से वातावरण को मंत्रमुग्ध कर दिया। रामचरितमानस की चौपाइयों को विभिन्न रागों में प्रस्तुत करना अत्यंत मधुर और कानों को भाने वाला रहा। शंकराचार्य के श्लोकों का स्पष्ट संस्कृत उच्चारण श्रोताओं पर गहरी छाप छोड़ गया। आयोजन का समापन जगद्गुरु शंकराचार्य को सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में हुआ, जिनकी समाधि के समीप यह कथा प्रस्तुत की गई। श्रद्धालुओं ने अनुभव किया कि केदारनाथ महादेव और शंकराचार्य दोनों ही इस ईमानदार प्रयास से जरूर प्रसन्न होंगे।

पर्दे के पीछे की वानरसेना अर्थात भक्ति और शक्ति के इतने विशाल आयोजन का सुचारु रूप से संचालन रविदादा की समर्पित टोली की बदौलत संभव हो पाया। सौ. हर्षदा ताई (उनकी सदा मुस्कुराती शक्ति और सहयोगी), नागनाथ, हिंदुराव, सचिन, अभिजीत, देसाई काका, ओंकार और अन्य सहयोगियों ने सेवा में तन-मन-धन से योगदान दिया। चाहे प्रसाद की व्यवस्था हो, यात्रियों की सुविधा होकृ हर पहलू में उनकी निष्ठा झलकती रही। श्रावण मास की ठंडी हवाओं और हिमालय की नीरवता में यह संकल्पित रामकथा सचमुच ‘न भूतो न भविष्यति’ अर्थात न पहले कभी, न आगे कभी होने का अहसास कराती सिद्ध हुई, जो इतनी आनंददायक थी, जिसे कुछ शब्दों में पिरोकर संस्मरण के तौर पर अन्य सभी भक्तों से साझा करने की इच्छा जाग्रत हुई। भक्तों ने स्वीकारा कि लगातार दस दिनों तक केदारनाथ धाम में रहकर उन्हें अद्वितीय सुरक्षा, संतोष और आध्यात्मिक आनंद का अनुभव हुआ है। अंत में, सभी भक्तों ने एक स्वर में हर हर महादेव! जय श्रीराम! जय जय रघुवीर समर्थ! का जयघोष करते हुए केदारनाथ की पवित्र भूमि पर नतमस्तक होकर श्री चरणों को प्रणाम किया और उस जगतगुरु को नमस्कार कर उस दिव्य दर्शन और दिव्य कथा के स्मरण को अपने साथ लेकर भक्तिमय रामकथा के रस को आत्मसात किया।

डॉ दीपा मोठघरे

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