अहोई ,मां का सन्तान के लिए उपवास का दिन

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अहोई माता का  व्रत रखने और उनकी मनोयोग से पूजा करने से अहोई मां, उपवास रख रही मां व उनकी सन्तान को लम्बी उम्र का आशीर्वाद देती हैं। संतान की सलामती से जुड़े इस व्रत का बहुत महत्व है। साथ ही इस दिन की पूजा को विशेष पूजा भी कहा जा सकता है। आइए आपको बताते हैं इस साल अहोई अष्टमी कब पड़ रही है और क्या है इसका शुभ मुहूर्त।

अहोई अष्टमी का त्योहार 13 अक्टूबर को पड़ रहा है। अहोई अष्टमी को कालाष्टमी भी कहते हैं। इस दिन मथुरा के राधा कुंड में लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद  और दिवाली से आठ दिन पहले रखा जाता है। 

अहोई शुभ पूजा मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि की शुरुआत 13 अक्टूबर की रात 12:24 बजे से होगी और इसका समापन 14 अक्टूबर की सुबह 11:09 बजे पर होगा। अहोई माता की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 53 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 08 मिनट तक रहेगा।

अहोई माता की पूजा ऐसे करें

सुबह के समय जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान आदि करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।  अब मंदिर या घर मे पूजा स्थान की दीवार पर गेरू और चावल से अहोई माता यानी कि मां पार्वती और स्याहु व उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं।इसके लिए बाजार में मिलने वाले पोस्टर का इस्तेमाल भी कर सकती हैं।  अब एक नए मटके में पानी भरकर रखें, उसपर हल्दी से स्वास्तिक बनाएं, अब मटके के ढक्कन पर सिंघाड़े रखें। 

घर में मौजूद सभी बुजुर्ग महिलाओं को बुलाकर सभी के साथ मिलकर अहोई माता का ध्यान करें और उनकी व्रत कथा पढ़ें। सभी के लिए एक-एक स्वच्छ कपड़ा भी रखें।  कथा खत्म होने के बाद इस कपड़े को उन महिलाओं को भेंट कर दें। रखे हुए मटके का पानी खाली ना करें इस पानी से दीवाली के दिन पूरे घर में पोंछा लगाएं। इससे घर में बरकत आती है।  रात के समय सितारों को जल से अर्घ्य दें और फिर ही उपवास को पूरा करें।

इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतानों की लंबी आयु के लिए रखती हैं। कुछ महिलाएं इस व्रत को संतान प्राप्ति के लिए भी करती हैं। यह व्रत दिनभर निर्जल रहकर किया जाता है। अहोई माता का पूजन करने के लिए महिलाएं तड़के उठकर मंदिर में जाती हैं और वहीं पर पूजा के साथ व्रत प्रारंभ होता है। यह व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही खोला जाता है। 

महिलाएं इस दिन सायंकाल भक्ति-भावना के साथ दीवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं जिनको लाकर उनकी पूजा की जा सकती है। कुछ महिलाएं पूजा के लिए चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं, जिसे स्याऊ कहते हैं और उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है।

तारे निकलने के बाद अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है। पूजन से पहले जमीन को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जलकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रख ते हैं और फिर भक्ति भाव से पूजा करते हैं। साथ ही अहोई अष्टमी की व्रत कथा का श्रद्धा भाव से श्रवण किया जाता है।

कथा, पूजन और आरती के बाद माता को हलवा, पूड़ी और चना चढ़ाया जाता है। कुछ परिवारों में माता को पानी के साथ दूध और कच्चा चावल चढ़ाते हैं।

क्या है अहोई की प्रचलित कथा बताया गया है कि एक साहूकार के 7 बेटे थे और एक बेटी थी। साहुकार ने अपने सातों बेटों और एक बेटी की शादी कर दी थी. अब उसके घर में सात बेटों के साथ सातबहुंएं भी थीं। साहुकार की बेटी दिवाली पर अपने ससुराल से मायके आई थी. दिवाली पर घर को लीपना था, इसलिए सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गईं. ये देखकरससुराल से मायके आई साहुकार की बेटी भी उनके साथ चल दी।

 साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटीकी खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया. इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।

स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटीभाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं सात पुत्रोंकी इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरीइच्छा हो वह मुझ से मांग ले. साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं. यदि आप मेरी कोख खुलवा देतो मैं आपका उपकार मानूंगी. गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली।

रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनीके बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहूने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।

छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है. गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।

वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है. स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है. स्याहु छोटीबहू को सात पुत्र और सात पुत्रवधुओं का आर्शीवाद देती है। और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देकर उद्यापन किया।इस लोक कथा के प्रति माताओ में अटूट आस्था है तभी तो वे इस कथा को बड़े मनोयोग से सुनकर अपना अहोई उपवास पूरा करती है।(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ साहित्यकार है)

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