जब समान “गिरफ्तारी कानून” तो विपक्ष को डर क्यों ?

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मानसून सत्र के दौरान गुरुवार, 21 अगस्त 2025 को संसद (लोकसभा) में ऐसा विधेयक पेश हुआ जिसने पूरे राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यह विधेयक सदन में पेश किया, जिसके बाद विपक्ष में हंगामा मच गया। यह “गिरफ्तारी कानून” साफ करता है कि अब भ्रष्टाचार या किसी आपराधिक मामले में फंसे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक तक भी गिरफ्तारी से नहीं बच पाएंगे। कांग्रेस, तृणमूल, सपा, और डीएमके सहित कई विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार इस कानून का इस्तेमाल गैर-भाजपा नेताओं को टारगेट करने के लिए करेगी। मोदी सरकार इसे समान कानून, समान जवाबदेही की दिशा में ऐतिहासिक कदम बता रही है। बड़ा सवाल यह है कि जब यह कानून सत्ता और विपक्ष दोनों पर बराबरी से लागू होगा, तो विपक्ष इतना बेचैन क्यों है? क्या यह मोदी सरकार का भ्रष्टाचार के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा सियासी हथियार साबित होगा? (शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार)

बुधवार, 20 अगस्त 2025 को मानसून सत्र के दौरान लोकसभा का माहौल अचानक सियासी जंग के अखाड़े में बदल गया। जैसे ही गृहमंत्री अमित शाह ने ‘गिरफ्तारी कानून’ पेश किया, विपक्षी सांसद सीटें छोड़कर वेल में कूद पड़े। जोरदार नारेबाजी के बीच हालात इतने बिगड़े कि कुछ सांसदों ने गृहमंत्री की ओर विधेयक की प्रतियां और कागज तक फेंक दिए। सत्ता पक्ष ने इसे लोकतंत्र की गरिमा पर हमला बताया, तो विपक्ष ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दे दिया। इस विधेयक का मुख्य प्रावधान यह है कि यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर अपराध के आरोप में गिरफ्तार होकर 30 दिनों से अधिक समय तक जेल में रहता है, तो उसका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा। इसका मकसद यह है कि जेल से शासन चलाने जैसी स्थिति पर रोक लगे और जनता के भरोसे की रक्षा हो। विपक्षी दलों का कहना है कि यह कानून “चुनिंदा नेताओं को टारगेट करने” के लिए लाया गया है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और डीएमके जैसे दलों का आरोप है कि मोदी सरकार इस कानून के सहारे गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और विपक्षी नेताओं पर शिकंजा कसना चाहती है। कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने सवाल उठाया कि गृहमंत्री अमित शाह खुद 2010 में गिरफ्तार हुए थे, तब क्या उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया था? तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने कहा कि यह कानून लोकतंत्र की हत्या है और केंद्र सरकार का मकसद विपक्ष को डराना है। समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा विपक्ष को खत्म करना चाहती है, लेकिन जनता इसका जवाब देगी।
भाजपा नेताओं ने विपक्षी आरोपों को खारिज करते हुए पलटवार किया। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अगर विपक्षी नेता ईमानदार हैं, तो डरने की क्या जरूरत? यह कानून सभी दलों और सभी नेताओं पर लागू होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा कि हमें पता है कि कई नेता जेल में हैं और कुछ जमानत पर बाहर हैं। हमने यहां तक देखा है कि जेल से फाइलों पर हस्ताक्षर किए गए, यह लोकतंत्र के साथ मज़ाक है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसे भ्रष्टाचार मुक्त भारत की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया। लोकसभा में हंगामे के बीच यह विधेयक पास नहीं हो सका और इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया है। राज्यसभा में भी इस पर चर्चा होनी बाकी है। यानी कानून बनने से पहले इसके प्रावधानों पर विस्तृत समीक्षा और बहस होगी। सोशल मीडिया और समाज के अलग-अलग तबकों में इस कानून को लेकर तीखी बहस छिड़ी हुई है। एक ओर लोग इसे भ्रष्टाचार पर करारी चोट बता रहे हैं, वहीं विपक्षी समर्थक इसे लोकतंत्र पर हमला कह रहे हैं। दिल्ली के एक कारोबारी ने कहा कि अगर कानून सब पर समान है, तो डर कैसा? जबकि एक छात्र नेता का कहना था कि भाजपा इसका इस्तेमाल चुनावी हथियार की तरह करेगी। गिरफ्तारी कानून ने भारतीय राजनीति में नया भूचाल खड़ा कर दिया है। विपक्ष इसे अपने नेताओं पर लक्षित हमले के रूप में देख रहा है, जबकि मोदी सरकार इसे पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में सबसे बड़ा कदम मान रही है। अब असली परीक्षा राज्यसभा और संयुक्त संसदीय समिति में होगी, जहां यह तय होगा कि यह विधेयक कानून का रूप कब और कैसे लेगा। लेकिन इतना तय है कि आने वाले चुनावों में यह मुद्दा सबसे बड़ा सियासी एजेंडा बन चुका है।

गृहमंत्री अमित शाह ने एक साथ तीन अहम विधेयक लोकसभा में पेश किए- गुरुवार को मानसून सत्र के दौरान संसद का माहौल उस वक्त गरमा गया जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक साथ तीन अहम विधेयक लोकसभा में पेश किए। इनमें सबसे चर्चित संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 है, जिसे आम बोलचाल में “गिरफ्तारी कानून” कहा जा रहा है। इस विधेयक का मुख्य प्रावधान यह है कि यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी गंभीर आपराधिक आरोप में गिरफ्तार होकर 30 दिनों से अधिक समय तक जेल में रहता है, तो उसका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा। इसके अलावा गृहमंत्री ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 और केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक, 2025 भी पेश किए। तीनों विधेयकों को फिलहाल गहन अध्ययन और समीक्षा के लिए संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया है। विपक्षी दलों ने इस कानून को “राजनीतिक हथियार” करार देते हुए आरोप लगाया कि मोदी सरकार इसका इस्तेमाल गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए करना चाहती है। कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने सवाल उठाया कि जब खुद अमित शाह 2010 में जेल गए थे, तब क्या उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया था? तृणमूल की महुआ मोइत्रा ने इसे “लोकतंत्र की हत्या” बताया, जबकि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा विपक्ष को खत्म करना चाहती है लेकिन जनता जवाब देगी। वहीं भाजपा ने विपक्षी आरोपों को सिरे से खारिज कर पलटवार किया। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि “अगर विपक्षी नेता ईमानदार हैं तो डरने की क्या जरूरत? यह कानून सभी दलों और नेताओं पर समान रूप से लागू होगा।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कटाक्ष करते हुए कहा, “देश ने देखा है कि कैसे कुछ नेता जेल में रहते हुए भी शासन चलाते रहे। अब यह लोकतंत्र के साथ मज़ाक और नहीं चलेगा।” भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसे भ्रष्टाचार-मुक्त भारत की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया। तीनों विधेयकों पर अभी संसद में अंतिम निर्णय बाकी है। जेपीसी में समीक्षा और फिर राज्यसभा में बहस के बाद ही ये कानून का रूप ले पाएंगे। लेकिन देशभर में इन पर जबरदस्त बहस शुरू हो गई है। समर्थकों का कहना है कि यह कदम “भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार” है और सत्ता–विपक्ष सभी पर बराबरी से लागू होगा। वहीं आलोचक इसे “लोकतांत्रिक ढांचे पर प्रहार” बताते हुए केंद्र पर मनमानी का आरोप लगा रहे हैं। गिरफ्तारी कानून के साथ जम्मू-कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेशों से जुड़े विधेयक भी चर्चा में हैं, लेकिन सबसे बड़ी सियासी बहस इसी बात पर है कि क्या यह ऐतिहासिक सुधार साबित होगा या विपक्ष पर केंद्र का सियासी हथियार।

विपक्षी दलों का आरोप, मोदी सरकार गैर-भाजपा नेताओं को करेगी टारगेट- गिरफ्तारी कानून विधेयक का सबसे अहम प्रावधान यह है कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री या सांसद/विधायक गंभीर अपराध के आरोप में गिरफ्तार होकर 30 दिनों से ज्यादा जेल में रहता है, तो उसका पद अपने आप समाप्त हो जाएगा। इसका उद्देश्य “जेल से शासन चलाने” जैसी स्थिति पर रोक लगाना और जनता का भरोसा बनाए रखना है। कांग्रेस, तृणमूल, समाजवादी पार्टी और डीएमके सहित कई विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार इस कानून का इस्तेमाल गैर-भाजपा नेताओं को टारगेट करने के लिए करेगी। गृहमंत्री अमित शाह ने दो टूक कहा कि अगर विपक्षी नेता ईमानदार हैं, तो डरने की क्या जरूरत? यह कानून सभी पर समान रूप से लागू होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि कुछ नेता जेल में हैं, कुछ जमानत पर बाहर हैं। हमने यहां तक देखा है कि जेल से फाइलों पर हस्ताक्षर होते हैं, यह लोकतंत्र के साथ मजाक है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसे भ्रष्टाचार-मुक्त भारत की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया। उल्लेखनीय है कि विपक्ष का असली डर इस कानून के तहत उन्हीं नेताओं के इर्द-गिर्द घूम रहा है, जिनका करियर भ्रष्टाचार और आपराधिक मामलों से जुड़ा रहा है। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय ने कथित दिल्ली शराब नीति घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद वे कई महीनों तक तिहाड़ जेल में बंद रहे। इस दौरान उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग विपक्ष ने तेज कर दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम राहत पर वे कुछ समय के लिए बाहर आकर सरकार का कामकाज संभालते रहे। यह पहली बार है जब किसी मौजूदा मुख्यमंत्री को इस तरह पद पर रहते हुए जेल जाना पड़ा। केजरीवाल की गिरफ्तारी ने न सिर्फ आम आदमी पार्टी बल्कि पूरे विपक्षी गठबंधन इंडिया को झकझोर दिया और भाजपा ने इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई बताया। लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला मामले में दोषी, जेल की सजा काट चुके हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया केस में जेल गए। कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार मनी लॉन्ड्रिंग में गिरफ्तार हो चुके हैं । झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जमीन घोटाला व मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए। समाजवादी पार्टी के आजम खान जमीन कब्जे व फर्जी दस्तावेज मामलों में कई बार जेल गए। यह कानून लागू हुआ तो ये सभी बड़े नाम सीधे इसके दायरे में आ सकते हैं। फिलहाल, सोशल मीडिया और सियासी गलियारों में जबरदस्त बहस छिड़ गई है। एक ओर भाजपा समर्थक इसे भ्रष्टाचार पर करारी चोट बता रहे हैं, तो दूसरी ओर विपक्षी खेमे का कहना है कि यह लोकतंत्र पर हमला है। इतना तय है कि “गिरफ्तारी कानून” आने वाले महीनों में देश की सबसे बड़ी सियासी बहस और चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है।

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