डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ का जवाब देने के लिए भारतीय निर्यातक तलाश रहे नए बाजार

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने के फैसले ने भारतीय व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। जहां एक ओर यह कदम भारत-अमेरिका के आर्थिक रिश्तों में तनाव की नई लकीर खींचता दिख रहा है, वहीं दूसरी ओर भारतीय निर्यातक अब इस झटके का जवाब देने के लिए वैश्विक स्तर पर नए बाजारों की तलाश में जुट गए हैं। टेक्सटाइल से लेकर फार्मा और ऑटो पार्ट्स तक, हर सेक्टर अब अमेरिका पर अपनी निर्भरता घटाकर एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और यूरोप जैसे क्षेत्रों में नए व्यापारिक अवसर तलाशने की रणनीति पर काम कर रहा है। सरकार भी इस मोर्चे पर सक्रिय हो चुकी है और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के जरिए विकल्पों को मजबूती देने में जुटी है। यह घटनाक्रम न सिर्फ भारत के आर्थिक भविष्य को नई दिशा दे सकता है, बल्कि वैश्विक व्यापार समीकरणों में भी बड़ा बदलाव ला सकता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने का सीधा असर भारतीय निर्यातकों और उद्योगों पर पड़ता दिख रहा है। यह टैरिफ खास तौर पर टेक्सटाइल, फार्मास्युटिकल्स, ऑटो पार्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक सामानों जैसे क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है, जिनका एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी बाजार पर निर्भर है। इसके चलते भारतीय निर्यातक अब तेजी से नए बाजारों की तलाश में जुट गए हैं, ताकि अमेरिकी निर्भरता को कम किया जा सके और व्यापार को नई दिशा दी जा सके। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन्स के मुताबिक, मौजूदा टैरिफ स्ट्रक्चर भारत के प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में अब निर्यातकों की नजर अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, यूरोपीय संघ और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे उभरते बाजारों पर है। भारत की कुछ प्रमुख कंपनियों ने पहले ही वैकल्पिक बाजारों में नए अनुबंधों पर बातचीत शुरू कर दी है। भारत सरकार ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है। वाणिज्य मंत्रालय ने विभिन्न निर्यात संगठनों और उद्योग प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर संभावित रणनीतियों पर विचार किया है। इसके तहत द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को मजबूत करने, निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए नई स्कीम्स लाने और विदेशी बाजारों में भारत की ब्रांडिंग बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है। साथ ही, डब्ल्यूटीओ के मंच पर भी भारत ने अमेरिकी टैरिफ नीति को अनुचित और अनुबंध विरोधी करार देते हुए आपत्ति दर्ज कराई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस टैरिफ का सबसे गहरा असर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों पर पड़ेगा, जो पहले से ही महंगाई, कच्चे माल की कमी और वैश्विक अनिश्चितताओं से जूझ रहे हैं। ऐसे में सरकार से उम्मीद की जा रही है कि वह इस संकट से निपटने के लिए विशेष राहत पैकेज और वित्तीय सहयोग की भी घोषणा करेगी। हालांकि यह स्थिति चुनौतियों से भरी है, लेकिन भारत इसे एक अवसर के रूप में भी देख रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर भारत वैकल्पिक बाजारों में अपनी पहुंच बना लेता है, तो यह लंबे समय में अधिक विविध और स्थिर व्यापारिक नेटवर्क की नींव बन सकता है। इसके लिए निर्यात गुणवत्ता, लॉजिस्टिक्स सपोर्ट, और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उत्पाद तैयार करना आवश्यक होगा। डोनाल्ड ट्रंप भारत पर अब तक 50% टैरिफ लगाने का ऐलान कर चुके हैं। उन्होंने 30 जुलाई को 25% टैरिफ लगाया था, जो 7 अगस्त से लागू हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति के इस फैसले के बाद दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों में नया मोड़ आ गया है। इस भारी शुल्क के चलते भारतीय निर्यातकों पर आर्थिक दबाव बढ़ा है, खासकर उन सेक्टर्स में जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। जवाब में भारत ने तुरंत अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए वैश्विक स्तर पर नए और उभरते बाजारों की तलाश शुरू कर दी है, ताकि व्यापार संतुलन बनाए रखा जा सके और आर्थिक नुकसान की भरपाई हो सके। ये कदम न केवल भारत की व्यापार नीति को नए आयाम देगा, बल्कि वैश्विक मंच पर देश की मौजूदगी को भी और मजबूत कर सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ लगाए जाने के बाद भारत सरकार और उद्योग जगत दोनों ही सतर्क हो गए हैं। इस फैसले से अमेरिका को होने वाला भारतीय निर्यात महंगा हो जाएगा, जिससे कई उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है। ऐसे में भारत अब अपनी व्यापारिक निर्भरता को विविध बनाते हुए विश्व के अन्य संभावित बाजारों की ओर रुख कर रहा है। वहीं भारत से अमेरिका भेजे जाने वाले सामानों पर आज यानी, 25% टैरिफ लगेगा। वहीं 25% एक्स्ट्रा टैरिफ 27 अगस्त से लागू होगा। इससे भारतीय सामान अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे। उनकी मांग कम हो सकती है। हालांकि, भारत के एक्सपोर्टर्स का कहना है कि माल बेचने के किए उनके पास अमेरिका के अलावा दुनिया भर के बाजार हैं। ज्वैलरी जैसे कई सेक्टर्स में भारत का अमेरिका को निर्यात टैरिफ कम होने की वजह ज्यादा है। टैरिफ बढ़ने के बाद ये व्यापारी दुनिया के बाकी बाजारों में हिस्सेदारी बढ़ा सकते हैं। वहीं राहुल गांधी ने बुधवार को रूसी तेल खरीदने पर भारत पर 25% एक्स्ट्रा टैरिफ लगाने के लिए अमेरिका की आलोचना की। साथ ही इसे भारत सरकार को अनुचित व्यापार समझौते के लिए धमकाने के लिए इकोनॉमिक ब्लैकमेल करार दिया। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ने भारत से ट्रेड डील पर बातचीत करने से इनकार कर दिया है। डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि जब तक टैरिफ विवाद का हल नहीं निकल जाता, बातचीत शुरू नहीं होगी। इससे पहले मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि भारत से ट्रेड डील पर बातचीत के लिए अमेरिकी अधिकारियों का एक दल इसी महीने भारत आने वाला है। वहीं, 6 अगस्त को एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर साइन कर भारत पर 25% टैरिफ और बढ़ा दिया है, जो 27 अगस्त से लागू होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश में कहा गया है कि रूसी तेल की खरीद की वजह से भारत पर यह एक्शन लिया गया है। रूस इस पैसे का इस्तेमाल यूक्रेन के खिलाफ जंग में कर रहा है।

भारतीय कपनियां इन देशों में अपना माल बेचने के लिए तलाश रही संभावना

अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत का 50% टैक्स लगाने के बाद भारतीय कंपनियों दुनिया के कई देशों के बाजारों में तलाश शुरू कर दी है। यूरोपीय संघ पहले से ही भारत का एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार है, जहां भारतीय दवाइयों, वस्त्रों और आईटी सेवाओं की मांग लगातार बनी हुई है। भारत इस क्षेत्र के साथ मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत भी कर रहा है, जिससे भविष्य में और अवसर बन सकते हैं। इसके अलावा दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों जैसे इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम में भारतीय उत्पादों की अच्छी पैठ है, खासकर टेक्सटाइल, फार्मा और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में। अफ्रीकी महाद्वीप भारत के लिए एक बड़ा संभावनाशील बाजार बनकर उभरा है। यहां बुनियादी दवाओं, सस्ती तकनीक, कृषि उपकरणों और उपभोक्ता उत्पादों की भारी मांग है। भारत अफ्रीकी देशों के साथ साउथ-साउथ कोऑपरेशन को और मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है। वहीं, लैटिन अमेरिकी देशों जैसे ब्राज़ील, अर्जेंटीना और चिली में भी भारतीय चाय, कॉफी, दवाइयां और ऑटोमोबाइल उत्पादों की लोकप्रियता बढ़ रही है। मध्य एशिया और रूस भी भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनते जा रहे हैं। रूस के साथ भारत के लंबे समय से घनिष्ठ संबंध हैं और वहां भारतीय मशीनरी, खाद्य उत्पाद और फार्मा की मांग लगातार बनी हुई है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के साथ हालिया व्यापार समझौतों ने भी नए अवसर खोल दिए हैं, खासकर शिक्षा, कृषि और टेक्नोलॉजी क्षेत्र में। भारत सरकार अब ‘निर्यात विविधीकरण’ की नीति पर तेजी से काम कर रही है। व्यापार समझौतों, लॉजिस्टिक सुधारों और वित्तीय प्रोत्साहनों के ज़रिए निर्यातकों को नए बाजारों तक पहुंचने में मदद दी जा रही है। “मेक इन इंडिया” और “वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट” जैसी योजनाएं भी भारत के निर्यात को नई दिशा देने में सहायक हो रही हैं। ट्रंप की टैरिफ नीति भारत के लिए जहां एक चुनौती है, वहीं यह अवसर भी है कि देश अपने निर्यात ढांचे को और मजबूत करे, नए बाजारों में अपनी जगह बनाए और वैश्विक मंच पर और अधिक आत्मनिर्भर और प्रतिस्पर्धी बनकर उभरे। पिछले दिनों निर्यातकों ने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात की। उन्होंने निर्यात संवर्धन और बाज़ार सहायता के जरिए समर्थन मांगा। इस्पात और कपड़ा उद्योगों ने वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के उपायों पर भी चर्चा की।

विपक्ष ने सरकार को घेरा, पीएम मोदी ने दिया करारा जवाब

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद देश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने इसे मोदी सरकार की कूटनीतिक असफलता करार दिया है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारत अब दबाव में झुकने वाला देश नहीं रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा, भारत आत्मनिर्भरता की राह पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है। अगर कोई देश हमारे व्यापारिक हितों को चोट पहुंचाता है, तो हम कूटनीतिक और व्यावसायिक दोनों मोर्चों पर ठोस जवाब देंगे। भारत अब किसी एक बाजार पर निर्भर नहीं रहेगा। वहीं दूसरी ओर अमेरिका के साथ इतने दौरे और व्यक्तिगत संबंधों के बावजूद अगर भारत पर भारी टैरिफ लगाया जा रहा है, तो यह सीधी नाकामी है। मोदी सरकार को बताना चाहिए कि उसने देश के कारोबारी हितों की सुरक्षा के लिए क्या किया। मोदी सरकार की ‘इवेंट आधारित कूटनीति’ अब विफल हो रही है। अमेरिका से दोस्ती की बातें की गईं, लेकिन जब व्यापार पर हमला हुआ तो सरकार मौन है। मोदी सरकार की विदेश नीति केवल कैमरे के सामने मुस्कराहट तक सीमित है। अब जब असली चुनौती सामने आई है, तो छोटे उद्योगों और किसानों पर संकट गहराने वाला है। अमेरिकी टैरिफ का सबसे ज्यादा असर भारत के एमएसएमई सेक्टर पर पड़ेगा। सरकार को तुरंत राहत और वैकल्पिक बाजार की नीति घोषित करनी चाहिए। भारत को एकतरफा अमेरिकी दबाव से बाहर आकर बहुपक्षीय व्यापार साझेदारियों की ओर कदम बढ़ाना होगा। सरकार को चीन, अफ्रीका, लातिन अमेरिका जैसे विकल्पों पर गंभीरता से काम करना चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अमेरिका के साथ इतने दौरे और व्यक्तिगत संबंधों के बावजूद अगर भारत पर भारी टैरिफ लगाया जा रहा है, तो यह सीधी नाकामी है। मोदी सरकार को बताना चाहिए कि उसने देश के कारोबारी हितों की सुरक्षा के लिए क्या किया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि मोदी सरकार की ‘इवेंट आधारित कूटनीति’ अब विफल हो रही है। अमेरिका से दोस्ती की बातें की गईं, लेकिन जब व्यापार पर हमला हुआ तो सरकार मौन है। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि मोदी सरकार की विदेश नीति केवल कैमरे के सामने मुस्कराहट तक सीमित है। अब जब असली चुनौती सामने आई है, तो छोटे उद्योगों और किसानों पर संकट गहराने वाला है। आप नेता संजय सिंह ने कहा कि अमेरिकी टैरिफ का सबसे ज्यादा असर भारत के एमएसएमई सेक्टर पर पड़ेगा। सरकार को तुरंत राहत और वैकल्पिक बाजार की नीति घोषित करनी चाहिए।

डोनाल्ड ट्रंप के साथ तनाव के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन करेंगे भारत दौरा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत समेत कई देशों में भारी भरकम टैरिफ लगाने के बाद वैश्विक बाजार में उथल-पुथल का माहौल है। डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले के बाद विश्व के कई देश नए दोस्त की तलाश में है। इसमें भारत भी शामिल है। इस बीच एक अच्छी खबर यह है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जल्द ही भारत दौरे पर आएंगे। ‌भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने गुरुवार को यह जानकारी दी। हालांकि उन्होंने पुतिन की भारत यात्रा की तारीख तो नहीं बताई, लेकिन दावा है कि रूसी राष्ट्रपति का भारत दौरा इसी साल के आखिर में हो सकता है। डोभाल ने कहा कि भारत और रूस के बीच दीर्घकालीन और विशेष रिश्ता है। हम इन रिश्तों को काफी महत्व देते हैं। हमारे बीच उच्चस्तरीय संबंध रहे हैं। इन उच्चस्तरीय वार्ताओं ने संबंधों की मजबूती में काफी योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा के बारे में जानकर हम बहुत उत्साहित और प्रसन्न हैं। मुझे लगता है कि तारीखें भी अब लगभग तय हो गई हैं। पुतिन का भारत दौरा ऐसे समय होगा, जब टैरिफ वॉर को लेकर अमेरिका और भारत के रिश्तों में तनाव का आलम है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एकतरफा तरीके से भारत के ऊपर 50 फीसदी टैरिफ थोप दिए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर नाराजगी जाहिर करते हुए भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया था, जिससे कुल टैरिफ 50% तक पहुंच गया। इस टैरिफ वार के बीच पुतिन का भारत दौरा पश्चिमी खेमे को एक साफ संदेश हो सकता है कि भारत अपने स्वतंत्र विदेश नीति के रास्ते पर अडिग है और किसी दबाव में झुकने को तैयार नहीं। भारत और रूस के बीच दशकों पुराना रक्षा सहयोग, ऊर्जा व्यापार और वैश्विक मंचों पर आपसी समर्थन इस दौरे के दौरान और मजबूत होने की संभावना है। खासकर तब जब दुनिया बहुपक्षीय ध्रुवीयता की ओर बढ़ रही है और अमेरिका-चीन तथा अमेरिका-रूस के तनाव बढ़ते जा रहे हैं, भारत के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए संतुलन की भूमिका निभाए। यह दौरा ब्रिक्स, एससीओ और जी20 जैसे मंचों पर भारत-रूस के समन्वय को भी रेखांकित करेगा। साथ ही भारत की तेल आपूर्ति, रक्षा उपकरण और वैश्विक दक्षिण में नेतृत्व की भूमिका को भी पुख्ता करेगा। अमेरिका से टकराव के इस दौर में पुतिन का दौरा मोदी सरकार के लिए भी एक कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा सकता है।

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