उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू

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देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई है, जिससे दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। संसद भवन में चुनावी चहलकदमी बढ़ गई है, जहां सत्तारूढ़ दल अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटा है, तो विपक्ष साझा उम्मीदवार उतारने के लिए गहन मंथन कर रहा है। निर्वाचन आयोग ने इस प्रक्रिया के तहत नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि, जांच की समय सीमा और मतदान की तिथि पहले ही घोषित कर दी है। उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों के मतों से होता है, इसलिए गठबंधन, समीकरण और संख्या बल इस बार भी परिणाम तय करने में निर्णायक साबित होंगे। यह मुकाबला केवल पद के लिए नहीं, बल्कि संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा के भविष्य के संचालन की दिशा भी तय करेगा, क्योंकि उपराष्ट्रपति देश के राज्यसभा के सभापति भी होते हैं।

देश के नए उपराष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई है। चुनाव आयोग ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी है, जिसके साथ ही नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया भी आरंभ हो गई है। तय कार्यक्रम के तहत अब उम्मीदवार नामांकन पत्र दाखिल कर सकेंगे और इसके बाद जांच व मतदान की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। इस चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई है और विभिन्न दल संभावित उम्मीदवारों पर मंथन में जुट गए हैं। चुनाव आयोग ने उपराष्ट्रपति पद के लिए 9 सितम्बर को होने वाले चुनाव के लिए गुरुवार को अधिसूचना जारी कर दी, जिससे नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई। अधिसूचना के अनुसार, नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 21 अगस्त है, जबकि दस्तावेजों की जांच 22 अगस्त को की जाएगी। चुनावी लड़ाई से हटने की अंतिम तिथि 25 अगस्त है। स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद 21 जुलाई को यह पद रिक्त हो गया था। धनखड़ का कार्यकाल अगस्त 2027 में समाप्त होना था। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उपराष्ट्रपति पद को लेकर बड़ी राजनीतिक लड़ाई होने वाली है। एनडीए के अलावा विपक्षी इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है, लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि इस बार इंडिया गठबंधन मजबूती से मैदान में उतरेगा। 2022 के चुनाव में विपक्ष को बड़ी हार झेलनी पड़ी थी, जिससे सीख लेकर वह अब पूरी तैयारी में है। 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में कुल 725 वोट डाले गए थे। जगदीप धनखड़ को 528 और विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को 182 वोट प्राप्त हुए थे। वहीं 15 वोट अवैध रहे। धनखड़ ने अल्वा को 346 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। इंडिया गठबंधन के नेताओं का मानना है कि संख्या बल कम जरूर हैं, इसके बावजूद उन्हें उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के खिलाफ उम्मीदवार उतारना चाहिए। गठबंधन के दल ऐसे संभावित नामों पर विचार कर रहे हैं, जिनकी छवि पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों, किसानों और आम जनता के बीच मजबूत और स्वीकार्य मानी जाती है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ‘डिनर डिप्लोमेसी’ के जरिए उपराष्ट्रपति के लिए विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की, तो बीजेपी ने भी उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी सियासी कवायद शुरू कर दी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में पिछले दिनों बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की एक अहम बैठक हुई, जिसमें उपराष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर मंथन किया गया। इसके अलावा जगदीप धनखड़ जैसी बड़ी जीत के लिए गैर-एनडीए दलों का समर्थन जुटाने का प्लान बनाया गया है। पार्टी के सामने उपराष्ट्रपति पद के लिए जगदीप धनखड़ का विकल्प ढूंढने के साथ-साथ 2022 की तरह बड़ी जीत हासिल करने की चुनौती है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने 7 अगस्त को विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेताओं को अपने आवास पर दावत दी है, जिसमें माना जा रहा है कि उपराष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त उम्मीदवार को लेकर फैसला किया जाएगा। इस तरह, कांग्रेस ने विपक्षी दलों की किलेबंदी अभी से शुरू कर दी है, ताकि 2022 की तरह किसी तरह की कोई गलती न हो। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद यह पहली बार है, जब इंडिया गठबंधन के नेता एकजुट हो रहे हैं।

मध्यावधि चुनाव में भी नए उपराष्ट्रपति को मिलता है पांच साल का कार्यकाल

संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, मध्यावधि चुनाव की स्थिति में पदधारी को पूरे पांच साल का कार्यकाल मिलता है। बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 68 के खंड 2 के अनुसार, उपराष्ट्रपति के पद पर उनकी मृत्यु, त्यागपत्र या पद से हटाये जाने या अन्य किसी कारण से होने वाली रिक्ति को भरने के लिए चुनाव, पद रिक्त होने के बाद “यथाशीघ्र” कराया जाता है। रिक्त को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति “अपने पदभार ग्रहण करने की तिथि से पांच वर्ष की पूर्ण अवधि तक” पद धारण करने का हकदार होगा। हालांकि, संविधान में इसका उल्लेख नहीं कि उपराष्ट्रपति की मृत्यु या कार्यकाल समाप्त होने से पहले त्यागपत्र देने की स्थिति में, या जब उपराष्ट्रपति भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, तो उसके कर्तव्यों का निर्वहन कौन करेगा। उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है। उनका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद, वे तब तक पद पर बने रह सकते हैं जब तक कि उनका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले। संविधान में एकमात्र प्रावधान उपराष्ट्रपति के राज्य सभा के सभापति के रूप में कार्य के संबंध में है, जो रिक्ति की अवधि के दौरान उपसभापति या भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्राधिकृत राज्य सभा के किसी अन्य सदस्य द्वारा किया जाता है। उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंपकर अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। यह त्यागपत्र स्वीकार होने के दिन से प्रभावी हो जाता है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष होता है (उपराष्ट्रपति होने के नाते राज्यसभा के सभापति का पद धारण करता है) तथा वह किसी अन्य लाभ के पद पर नहीं होता है। किसी भी अवधि के दौरान जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है या उसके कार्यों का निर्वहन करता है, तो वह राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करता है और राज्य सभा के सभापति को देय किसी भी वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होता है।

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