उपराष्ट्रपति चुनाव में दक्षिण की जंग, राधाकृष्णन-सुदर्शन आमने-सामने

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देश की सियासत में उपराष्ट्रपति चुनाव इस बार खासा दिलचस्प हो गया है। मैदान में एक ओर एनडीए प्रत्याशी राधाकृष्णन हैं, तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन ने सुदर्शन को उतारा है। दोनों नेता दक्षिण भारत से ताल्लुक रखते हैं, ऐसे में यह मुकाबला सिर्फ संसद भवन तक सीमित नहीं बल्कि दक्षिण की राजनीति और समीकरणों पर भी बड़ा असर डाल सकता है। एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच यह सीधा टकराव सत्ता संतुलन की अगली बड़ी तस्वीर तय करेगा। उपराष्ट्रपति चुनाव का परिणाम सिर्फ संसद भवन के ऊपरी सदन की औपचारिकता नहीं होगा, बल्कि यह सत्ता और विपक्ष दोनों की राजनीतिक रणनीति और मनोबल पर गहरा असर डालेगा। अगर एनडीए समर्थित उम्मीदवार जीत हासिल करते हैं तो यह भाजपा और उसके सहयोगी दलों के लिए एक बड़ा मनोवैज्ञानिक विजय होगा। दिव्य हिमगिरि की रिपोर्ट।

सियासत के सबसे बड़े दंगलों में से एक उपराष्ट्रपति चुनाव ने अब जोर पकड़ लिया है। मैदान में दक्षिण भारत से आने वाले दो दिग्गज आमने-सामने हैं। एक ओर एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन और दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी बी सुदर्शन रेड्डी। राधाकृष्णन ने 20 अगस्त को नामांकन दाखिल किया। उनका नामांकन चार सेटों में हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य प्रस्तावक रहे। नामांकन के दौरान भाजपा और एनडीए के करीब 160 सांसद मौजूद थे। वहीं बी सुदर्शन रेड्डी ने 21 अगस्त को नामांकन दाखिल किया। इस मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव और शिवसेना (यूबीटी) के संजय राउत जैसे विपक्ष के बड़े नेता उनके साथ रहे। दोनों प्रत्याशियों के नामांकन के साथ ही यह साफ हो गया है कि उपराष्ट्रपति चुनाव सिर्फ संसद का मामला नहीं बल्कि दक्षिण की सियासत और राष्ट्रीय समीकरणों को भी नई दिशा देने वाला है। उल्लेखनीय है कि जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना त्यागपत्र सौंपा, जिसे तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया गया। धनखड़ का इस्तीफा खास इसलिए भी माना गया क्योंकि वे कार्यकाल पूरा करने से पहले पद छोड़ने वाले देश के केवल तीसरे उपराष्ट्रपति बने। उनसे पहले वी.वी. गिरी और आर. वेंकटरमण ने भी कार्यकाल बीच में ही त्यागपत्र दिया था। धनखड़ के इस्तीफे के बाद राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने संभाला। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार उपराष्ट्रपति पद रिक्त होने पर यह जिम्मेदारी स्वतः ही उपसभापति के पास चली जाती है। इसके बाद चुनाव आयोग ने 1 अगस्त 2025 को घोषणा की कि उपराष्ट्रपति चुनाव 9 सितंबर को होगा । यही कारण है कि चुनाव अपेक्षाकृत पहले कराना पड़ा और अब यह मुकाबला एनडीए के सी.पी. राधाकृष्णन और इंडिया गठबंधन के बी. सुदर्शन रेड्डी के बीच दक्षिण भारत की अहम सियासी पृष्ठभूमि में हो रहा है। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कोच्चि में एक कार्यक्रम के दौरान इंडिया गठबंधन के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी पर सीधा हमला बोला। शाह ने कहा कि रिटायर्ड जस्टिस रेड्डी ने 2011 में सल्वा जुडुम को खत्म करने वाला फैसला सुनाया था, जिससे नक्सलवाद को ताकत मिली और देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। शाह ने आरोप लगाया कि अगर यह फैसला न होता तो 2020 तक नक्सलवाद देश से समाप्त हो गया होता। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी दल कांग्रेस और वामपंथी दबाव में आकर ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बना रहे हैं, जिनका फैसला नक्सली हिंसा को बढ़ावा देने वाला साबित हुआ। अमित शाह के इस बयान से उपराष्ट्रपति चुनाव का सियासी पारा और चढ़ गया है, जहां मुकाबला अब सिर्फ एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और नक्सलवाद जैसे गंभीर मुद्दों से भी सीधे जुड़ गया है।

उपराष्ट्रपति का चुनाव सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए अहम– उपराष्ट्रपति चुनाव का परिणाम सिर्फ संसद भवन के ऊपरी सदन की औपचारिकता नहीं होगा, बल्कि यह सत्ता और विपक्ष दोनों की राजनीतिक रणनीति और मनोबल पर गहरा असर डालेगा। अगर एनडीए समर्थित उम्मीदवार जीत हासिल करते हैं तो यह भाजपा और उसके सहयोगी दलों के लिए एक बड़ा मनोवैज्ञानिक विजय होगा। लोकसभा में पहले से मजबूत बहुमत के बाद राज्यसभा की कमान पर भी नियंत्रण पाने की उनकी रणनीति और धारदार हो जाएगी। इससे सरकार के विधायी एजेंडे को और सुगमता मिलेगी तथा विपक्ष की ताकत कमजोर दिखने लगेगी। साथ ही दक्षिण भारत से उम्मीदवार उतारना भाजपा की दक्षिण में पैठ बढ़ाने की दीर्घकालिक योजना को और मजबूती देगा। वहीं, यदि इंडिया गठबंधन का प्रत्याशी जीत दर्ज करता है, तो यह विपक्षी खेमे के लिए जबरदस्त राजनीतिक ऑक्सीजन का काम करेगा। लोकसभा चुनावों में लगातार हार झेल रहे विपक्ष के लिए यह न केवल नैतिक विजय होगी, बल्कि यह संदेश भी जाएगा कि संयुक्त मोर्चा सरकार को हराने में सक्षम है। इससे गठबंधन की एकजुटता पर जनता का भरोसा बढ़ेगा और आने वाले राज्यों के चुनावों में विपक्षी दल नए आत्मविश्वास के साथ मैदान में उतरेंगे। दरअसल, उपराष्ट्रपति चुनाव सीधे तौर पर सत्ता की कुर्सी को प्रभावित नहीं करता, लेकिन इसकी राजनीतिक ध्वनि बहुत दूर तक सुनाई देती है। इसलिए चाहे जीत एनडीए की हो या इंडिया गठबंधन की। यह परिणाम आने वाले महीनों में संसद की राजनीति की दिशा और दोनों खेमों के हौसले तय करेगा।

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