आपदा प्र्रबंधन का मतलब ही चौबीस घंटे सर्तक रहना हैः विनोद कुमार सुमन

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उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन सचिव 2007 बैच के आईएएस अधिकारी विनोद कुमार सुमन अपनी कर्तव्यनिष्ठा और बेहतर परिणामों के लिए जाने जाते है। विनोद कुमार सुमन आज के युवाओं के लिए एक मिसाल हैं। उन्होंने 25 रूपये प्रतिदिन की मजदूरी करके अपनी ग्रेजुएशन पूरी की। मजदूरी करते हुए उन्होंने कभी अपनी किस्मत को नहीं कोसा क्योंकि उनका लक्ष्य उच्च शिक्षा प्राप्त करके आईएएस बनना था। लक्ष्य को साधने के लिए उन्होंने मजदूरी करने से कोई परहेज नहीं किया। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने पहले महालेखाकार कार्यालय में एकाउंटेंट पद पर कार्य किया और फिर 1997 में पीसीएस की परीक्षा पास की। उत्कृष्ट सेवा करते हुए उन्हें 2007 में आईएएस कैडर में प्रमोशन मिला। उन्होंने संघर्षों के बाद जिस लक्ष्य को प्राप्त किया वहां उनको सेवा करते हुए 29 वर्ष हो गए है। वर्तमान दायित्व एवं जीवन के संघर्षों और उपलब्धियों के बारे में दिव्य हिमगिरि के संपादक कुँवर राज अस्थाना ने उनसे खास बातचीत की। पेश है बातचीत के कुछ अंश……

आप अपनी प्रारभ्ंिाक शिक्षा के विषय में बताइये

देखिए, मैं मूल रूप से जनपद भदोई (उत्तर प्रदेश) का रहने वाला हूँ। भदोई जनपद जो कि इलाहाबाद और वाराणसी के बीच में पड़ता है तथा इसको कालीन नगरी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि कालीन बनाने का सबसे ज्यादा कार्य हमारे जनपद भदोही में ही होता है। मैंने अपनी इण्टरमीडिएट की तक शिक्षा विभूती नारायण राजकीय इंटर कॉलेज, भदोही से पूर्ण की तथा अपनी उच्च शिक्षा श्रीनगर, गढ़वाल (तब उत्तर प्रदेश, वर्तमान में उत्तराखंड) से गणित, इतिहास, सांख्यिंकी विषयों से पूर्ण किया। अपनी स्नातक की डिग्री पूर्ण करने के पश्चात मैंने 1994 में प्राचीन इतिहास विषय में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री पूर्ण की। इसके पश्चात वर्ष 1995 में लखनऊ विश्वविद्यालय से पब्लिक एडमिनिस्टेªशन का डिप्लोमा पूरा किया।

आप कौन से बैच के अधिकारी है तथा अभी तक आप कहाँ-कहाँ नियुक्त रहे?

मैं यू.पी.पी.सी.एस. 1998 बैच का अधिकारी हूँ। इस परीक्षा में शामिल होने से पहले मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में महालेखाकार कार्यालय में एकाउंटेंट के पद पर कार्यरत था। पी.सी.एस. अधिकारी के रूप में मेरी पहली ज्वाइनिंग जनपद लखनऊ में ए.आर.टी.ओ. के पद पर हुई। इसके बाद वर्ष 1999 में मेरी पोस्टिंग इसी पद पर जनपद पौड़ी गढ़वाल (अविभाजित उत्तर प्रदेश) में हो गई। वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के कुछ महीने पहले ही मेरा प्रमोशन हो गया तथा मैंने जनपद फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) में एस.डी.एम. के रूप में ज्वाइन किया। नवम्बर 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तर प्रदेश में पीसीएस अधिकारियों के लिए कोई ट्रेनिंग सेन्टर नहीं रह गया था। उत्तर प्रदेश के लगभग 20 अधिकारियों को वर्ष 2001 में ए.टी.आई. नैनीताल में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। ट्रेनिंग के पश्चात् हम 20 अधिकारियों में से 18 अधिकारियों को उत्तराखंड राज्य में ही पोस्टिंग दे दी गई। मैंने दिसम्बर 2001 में जनपद अल्मोड़ा में एस.डी.एम. के रूप में ज्वाइन किया। इसके बाद जनवरी 2002 में मेरी पोस्टिंग इसी पद पर जनपद रानीखेत हो गई। इसके बाद मैंने महाप्रबंधक, कुमाऊं मंडल विकास निगम, नैनीताल के रूप में ज्वाइन किया। वर्ष 2007 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव शुरू हो गये और राज्य में आचार संहिता लगने के साथ ही मुझे देहरादून में सिटी मजिस्ट्रेट का चार्ज दिया गया। इसी वर्ष 2007 में मेरा प्रमोशन हुआ तथा मैने ए.डी.एम. देहरादून के पद पर ज्वाइन किया। तत्पश्चात मार्च 2009 में मेरी पोस्टिंग पौड़ी गढ़वाल में इसी पद पर हो गई। पौड़ी गढ़वाल के बाद मैं एक बार पिफर देहरादून वापिस लौट कर आया और इसके बाद हरिद्वार से होते हुए वापिस देहरादून में देहरादून मसूरी विकास प्राधिकरण में सचिव बनकर वापिस लौटा। अक्टूबर 2011 में तीसरी बार देहरादून के एडीएम के रूप में पोस्टिंग दी गई। मई 2012 मेरे पास परिवहन निगम में महाप्रबंधक प्रशासन तथा उत्तराखंड सूचना आयोग में सचिव पद की जिम्मेदारी आ गयी। वर्ष 2013 में मेरी पोस्टिंग एक साथ निदेशक अल्पसंख्यक विभाग, गन्ना आयुक्त काशीपुर, निदेशक समाज कल्याण विभाग, हल्द्वानी तथा श्रम आयुक्त हल्द्वानी के पदों पर हुई। 2013 में डीपीसी के बाद मेरा प्रमोशन आईएएस के लिए हो गया और मुझे आईएएस 2007 बैच का आंवटन हुआ। जनवरी 2014 में मेरी नियुक्ति जिलाधिकारी जनपद अल्मोड़ा के पद पर हुई। अक्टूबर 2015 में मेरी पोस्टिंग जिलाधिकारी चमोली के पद पर हुई। मई 2017 में मैंने उत्तराखंड शासन में अपर सचिव पद पर ज्वाइन किया। इस दौरान मेरे पास आपदा प्रबंधन, शहरी विकास व अन्य चार्ज रहे। इसके बाद मुझे मार्च 2018 में जनपद नैनीताल का जिलाधिकारी बनाया गया। वर्ष 2021 मंे मैंने उत्तराखंड शासन में सचिव पद पर ज्वाइन किया।

आप अपने प्रशासनिक जीवन की उपलब्धियों के बारे में बताएं।

उपलब्धियों के विषय में मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि अपने सेवाकाल के दौरान मेरा हमेशा विश्वास रहा है कि मुझे जो दायित्व दिया जाता है निष्ठापूर्वक उसको पूरा करना ही मैं अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानता हूँ। मेरे सेवाकाल को 30वां वर्ष चल रहा है। अब तक सबसे बड़ी उपलब्धियां मैं इसी को मानता हूँ कि मैं 30 वर्षों में कभी भी विवादित नहीं रहा। मैं जहां भी पोस्टिड रहा मुझे अपने अधीनस्थों का पूरा सहयोग मिला और बॉस जो भी रहे उनका पूरा प्यार-आशीर्वाद मिला और साथ ही समाज के सभी वर्गों का सहयोग मिला। इसी को मैं बहुत बड़ी उपलब्धि मानता हूं।

आप तीन जिलों के जिलाधिकारी रहे। जिलाधिकारी के रूप में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा और उनको आपने कैसे हैंडल किया?

देखिए, मेरा शुरू से मानना रहा कि जो हमें दायित्व दिये गये कैसे उनका समुचित निर्वाह किया जाए। एक जिलाधिकारी के रूप में मेरा प्रयास यही रहा कि जिलाधिकारी कार्यालय और कैंप दोनों ही आमजन के लिए सुलभ रहे। मैंने हमेशा आमजन के साथ संवाद को प्राथमिकता दी, मैंने अपने अधीनस्थों को भी जनता के साथ संवाद के लिए हमेशा प्रेरित किया। क्योंकि मेरा मानना है कि आधी समस्याओं का समाधान केवल संवाद से ही हो जाता है। मैं तीन जिलों में जिलाधिकारी रहा वहां मैंने बिना किसी विवाद के अपना कार्यकाल पूरा किया और मेरा ट्रांसपफर भी मेरी रिक्वेस्ट पर ही हुआ।

आपका लाईफस्टाइल क्या है और आपको किस प्रकार का कार्य करने में संतुष्टि प्राप्त होती है?

देखिए, प्रशासन में किसी भी एक पफील्ड में काम करना नहीं होता है। आपको सर्वांगीण तरीके से काम करना होता है। जैसे अभी मेरे पास आपदा प्रबंधन का चार्ज है, तो आपदा प्रबंधन में एक काम नही होता इसमें हमेशा सजग रहना पड़ता है, वॉच करते रहना पड़ता है कि सरकार की मंशा क्या है? पब्लिक की इच्छायें क्या है? देखना पड़ता है। बाकी जो इच्छा पालने की बात है तो मेरा जीवन बड़ा ही संघर्षाे से भरा रहा हैं। मुझे जिंदगी ने अपने बारे में सोचने का मौका नहीं दिया। काम मेरे लिए सर्वोपरि रहा। मैंने हमेशा काम करने में विश्वास रखा है। मेरा ऑफिस सुबह 9ः30 बजे से शुरू होकर रात के 10 बजे तक चलता है। काम करने से मुझे खुशी मिलती है। प्रशासनिक सेवा के दौरान बहुत से इनीशिएटिव लिए, उनमें से कुछ समय रहते पूरे हो गए, कुछ हमारे जाने के बाद पूरे हुए। लेकिन मेरे बनाए गए प्लान जब भी पूरे हुए मुझे आत्मसंतुष्टि प्राप्त हुई। जैसे- जागेश्वर, अल्मोड़ा में मैंने मास्टर प्लान बनाया था। मास्टर प्लान के तहत वहां मंदिर कमेटी बनाई गई। स्थानीय लोग इस कमेटी के खिलाफ थे। तब लोगों ने 22 दिन की हड़ताल भी की। मैंने लोगों के साथ संवाद किया। उनकी बात सुनी और सरकार की मंशा भी बताई। फलस्वरूप मंदिर कमेटी ने काम करना शुरू किया, स्थानीय लोगों की हितों को सुरक्षित किया गया। मुझे यह बताने में बहुत प्रसन्नता होती है कि 1 साल के अंतर्गत मंदिर में जो लगभग 75,000 रूपये चढ़ावा आता था, वह अब लगभग 75 लाख से लेकर 80 लाख तक आता है। अब स्थानीय निवासियों को भी कोई समस्या नहीं है। इसी राशि से प्लान बनाकर मंदिर का विकास किया जा रहा है। अल्मोड़ा में आमजन को बड़ी दिक्कत होती थी। वहां का कलेक्ट्रेट बहुत पुराना था। उसे शिफ्रट करने का प्लान बनाया। सरकार के सहयोग से नई बिल्डिंग बनाई गई यह कार्य भी पूरा हुआ। जब लोग चमोली से बद्रीनाथ- केदारनाथ जाते थे तो उस समय रास्तों की बहुत दिक्कतें थी रास्ते खराब थे इसको हमने एक चेलेंज के रूप मंे लिया। मैं मानता हूँ कि विजन देने का काम राजनेता करते हैं। सरकार की बहुत सारी नीतियां और लक्ष्य होते हैं और ब्यूरोक्रेट के पास सीमित समय होता है। तो हमारी एप्रोच यही होनी चाहिए कि हमें जिस भी पद पर जितना समय मिला है, हम उस समय में सरकार के लक्ष्यों की प्राप्ति को अधिक से अधिक कर सके।

आपने जीवन के अन्दर जो उपलब्धियां हासिल की हैं उसके पीछे किस तरह की चुनौतियां रही, किस तरह के संघर्ष रहे, चाहें वह आपके स्कूली जीवन में रहे हो चाहे वह प्रशासनिक में। किस तरह की चुनौतियां थी, किस तरह के संघर्ष थे। कैसे आप प्रशासनिक सेवा में आये?

देखिए, इंटरमीडियट तक मैं घर पर रहा कोई दिक्कत नहीं रही। मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय की तैयारी कर रहा था तो मुझे लगा पढ़ाई ठीक से नहीं हो रही है। उसके कई कारण थे उसमें एक कारण था, जहां हम रहते थे वहां दो कमरे थे जिसमें करीब 12-13 लोग रहते थे। इसी कारण से पढ़ाई हो नहीं पा रही थी। मेरा सपना आईएएस बनने का था। मुझे लगा कि पढ़ाई के लिए कुछ करना चाहिये नहीं तो भविष्य कैसे बनेगा, सपना कैसे पूरा होगा। मैंने 19 साल की उम्र में पढ़ाई के लिए घर से भागने का फैसला किया। मैंने तय किया कि ऐसे विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जाए जहां मुझे कोई जानता न हो। मैंने श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय में प्रवेश का सपना संजोया और भदोही से भागकर यहां आ गया। मेरे चाचा पुलिस में दरोगा थे। मैंने अपने चाचा से 500 रूपये यह कहकर मांगे थे कि मुझे इलाहबाद विश्वविद्यालय जाना है वहां मेरे प्रवेश की बात हो गई है। चाचा मुझे बस में बैठाने के लिए बस अड्डे तक आ गए। ये भी एक मुसीबत थी। मुझे हरदोई डिपो की बस पकड़नी थी और अगर चाचा बस अड्डे आ जाते तो वो मुझे इलाहबाद की बस पकड़वा देते। लेकिन ऐन वक्त उनके पास कोई काम आ गया और मैं इस मुसीबत से छूट गया। मैंने कभी पहाड़ नहीं देखा था, मुझे अन्दाजा नहीं था कि पहाड़ ऐसे होते है। मेरे परिवार या खानदान से कोई पहाड़ में आये नहीं थे। जब मैं आया तो फिर काफी दिक्कते हुई यहां पर, क्यांेकि मैं कुछ लेकर नहीं आया था, खाली हाथ आया था। हालांकि प्लानिंग से आया था लेकिन 500 रूपये में से कुछ राशन में खर्च हो गये और कुछ बस के किराए में। जब मैं श्रीनगर बस अड्डे मंे उतरा तब मेरे पास 150-200 रूपये के आस-पास बचे थे। वही मेरी पूंजी थी इसके अलावा तीन किताबे, दो पैंट दो शर्ट जिसमें से एक पहना हुआ था और सटिपिर्फकेट थे मेरे पास। शुरू में कापफी दिक्कते हुई। उस वक्त बहुत सारे बच्चे पढ़ाई करने के लिए आसपास से श्रीनगर आते थे। तो पढ़ाई करने वाले बच्चांे को बहुत सारा पैसा नहीं चाहिये होता है मात्रा 50-60 रूपये रोज चाहिये होते थे। मैंने शुरू में प्लानिंग की कि रिक्शा चला लेगें या फिर चाय की ठेली या सब्जी या फिर चाट की ठेली लगा लेगें और एक घंटा खोल लेगें। एक घंटे में इतनी कमाई हो जायेगी की अपना पढ़ाई हो जायेगी। मेरा लक्ष्य केवल पढ़ाई था। तो पढ़ाई के लिये जितना न्यूनतम चाहिये केवल उतना ही करना था। पर यहां तो रिक्शा चलते नहीं थे, तो पहला आइडिया ड्रॉप हो गया। सब्जी की ठेली या चाय की ठेली के लिए भी 3-4 हजार रूपये की जरूरत थी इसलिए वह आइडिया भी सम्भव नहीं हो पाया। जब कोई आइडिया धरातल पर उतरता नहीं दिखा तो मुझे मजदूरी सबसे बेहतर विकल्प लगा। वहां श्रीनगर बस अड्डे पर एक नए सुलभ शौचालय का कंस्ट्रक्शन चल रहा था। वहां मुझे तुरंत मजदूरी का काम मिल गया। यहां मैंने करीब 02 महीने के आस-पास 60 दिन तक बिना गैप के लगातार काम किया। उस समय मुझे 25 रूपये दिहाड़ी मिलती थी। 02 महीने काम करके मुझे 1500 रूपये मिले। पिफर रात में ओवरटाइम करता था जिसके एवज में 05 रूपये घंटा के हिसाब से पैसे मिल जाते थे। मैंने यह किया कि दिहाड़ी के पैसे तो पूरे पफीस और पुस्तक के लिए बचाए। ओवर टाइम से जो पैसे मिलते थे उससे खाने-पीने का खर्च चलाया। मैंने खाने पीने का प्रबंध ऐसे किया कि मैं दोपहर का खाना शाम को 4 बजे के लगभग खाता था तो उससे मेरा सुबह, दिन और शाम दोनों कवर हो जाता था। लगभग 02 महीने तक ऐसा रहा कि एक समय का खाना खाकर मेरा काम चल जाता था। मुझे अपना काम को लेकर कभी दिक्कत नहीं होती थी, क्योंकि मेरा लक्ष्य स्पष्ट था। मैं अपन पास थोड़ा चना और गुड़ रखता था। वह अतिरिक्त खुराक के लिए काम आता था। तो 02 महीने तक ऐसा ही चला। उसके बाद पिफर मैंने एक कमरा किराए पर लिया। इस दौरान मैं एक मन्दिर के पास सड़क किनारे सीमेन्ट का बोरा बिछाकर लुंगी ओढ़कर सो जाता था। इस दौरान कभी मुझे दर्द हुआ हो तो याद नहीं हैं। मैंने इस जिंदगी को रूटीन के रूप में लिया था क्योंकि संघर्ष का यह रास्ता मैंने खुद ही तैयार किया था, तो संघर्ष मुझे ही करना था। आज बताने में जरूर लगता है कोई दिक्कत हुई होगी लेकिन उस समय कोई दिक्कत नहीं थी। क्योंकि मैं मानता था कि मैं तपस्या कर रहा हूँ और तपस्या के आगे मंजिल मिलेगी और यह सब चीजंे गायब हो जायेगी। पिफर सितंबर-अक्टूबर से हमारी क्लासे शुरू हो गई और पढ़ाई होने लगी। तब मैं छुट्टी के दिन मजदूरी करता था। पिफर नवम्बर से मैंने ट्यूशन लेनी शुरू कर दी। पिफर जब मुझे ट्यूशन मिलने लगे तो मेरे पास ट्यूशनों की भरमार हो गई और पिफर स्थिति भी ठीक ठाक हो गई। मैंने जिन बच्चों को ट्यूशन दिए उनके अच्छे नम्बर आये तो कुछ प्रशंसा भी मिली। मुझे याद है जनवरी-पफरवरी में मेरे पास 12-15 ट्यूशन हो गई थी। पैसे की दिक्कत दूर हो गई थी। परंतु नवम्बर तक बहुत दिक्कत रही, मेरे पास हापफ स्वेटर, गर्म कपड़े नहीं थे। श्रीनगर की ठंड में मैंने 100 रूपये में पहला स्वेटर 25 नवम्बर को लिया था। मैं मानता हूँ कि अगर हम ठान ले कि हमें यह काम करना है तो भगवान भी रास्ता बनाता है और काम बनता चला जाता है। पिफर उसके बाद ग्रेजुएशन कम्पलीट हुई। इसी बीच कोई जान पहचान वाले इलाहबाद से श्रीनगर आए, उन्होंने यहां हमें देखा। उन्होने हमें समझाया-बुझाया कि तुम्हारे घरवाले परेशान हैं। मेरी किसी से कोई ऐसी नाराजगी नहीं थी तो पिफर मैं घर चला गया।

अभी वर्तमान में जो पद आपके पास है आपदा प्रबंधन उसकी क्या चुनौतियां है?

देखिए, आपदा को आने से हम नहीं रोक सकते, तो यह मेरे दिमाग में क्लीयर है, क्यांेकि मैं तीन जिलों में अधिकारी रहा हूँ। अल्मोड़ा, और चमोली जिलों में तो बहुत ज्यादा आपदा का प्रभाव पड़ता हैं। तो मेरे पास आपदा प्रबंधन का धरातलीय अनुभव है। जब बारिश का अर्लट जारी होता है तो मैं अपने अनुभव से यह अंदाजा लगा लेता हूं कि पानी किस क्षेत्रा में किस तरह का नुकसान करेगा, या कहां-कहां लैंड स्लाइड के खतरे ज्यादा हो सकते है। तो उसी के आधार पर हम सभी जिलों में पूर्व की तैयारी करके रखते है। हमारी कोशिश यही रहती है कि हम अपने प्रबंधन से जान-माल की हानि को कम कर सके और आम जनता को बचा सकें। वर्षा ट्टतुकाल में सबसे अधिक दिक्कतें बाहर से आने वाले तीर्थयात्रियों के साथ होती है। वह यहां की भौगोलिक विषमताओं से परीचित नहीं होते हैं। जब हम उनको रोकने का प्रयास करते हैं तो वह पैनिक हो जाते है। यात्रा रूट पर लैंड स्लाइड के कारण जो भी जान-माल की हानि हुई है, वह उन लोगों की हुई है जिन्होंने प्रशासन की बात नहीं मानी। चारधाम यात्रा में आने वाले तीर्थ यात्रियों से मेरी यही अपील है कि वह यात्रा के दौरान जिला प्रशासन द्वारा जारी एलर्ट को माने। उत्तराखंड सरकार और प्रशासन आपकी सुरक्षा और बेहतरी के लिए ही सजग है।

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