16 अगस्त को केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया। राज्य की 90 विधानसभा सीटों पर 3 पफेज में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। चुनाव आयोग की इस घोषणा के बाद श्रीनगर से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल शुरू हो गई है। जम्मू कश्मीर में अगले महीने सितंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा, कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कांप्रफेंस के बीच अनुच्छेद 370 को लेकर वैचारिक लड़ाई का भी इम्तिहान होगा। घाटी के लोग इस चुनाव का काफी समय से इंतजार भी कर रहे थे। 5 साल पहले केंद्र की मोदी सरकार का जम्मू कश्मीर से 370 हटाने का पफैसला सही था या गलत इस पर भी लोकतंत्रा अपनी मुहर लगाएगा। केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। शंभू नाथ गौतम वरिष्ठ पत्राकार 10 साल बाद एक बार पिफर जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्रा का चुनावी उत्सव शुरू हो गया है। घाटी की आवाम राज्य में नई सरकार चुनने के लिए तैयार है। शुक्रवार, 16 अगस्त को केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया। चुनाव आयोग की इस घोषणा के बाद श्रीनगर से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल शुरू हो गई है। जम्मू कश्मीर में अगले महीने सितंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा, कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कांप्रफेंस के बीच अनुच्छेद 370 को लेकर वैचारिक लड़ाई का भी इम्तिहान होगा। घाटी के लोग इस चुनाव का कापफी समय से इंतजार भी कर रहे थे। 5 साल पहले केंद्र की मोदी सरकार का जम्मू कश्मीर से 370 हटाने का पफैसला सही था या गलत इस पर भी लोकतंत्रा अपनी मुहर लगाएगा। केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पड़ोसी पाकिस्तान भी टकटकी लगाए हुए है। वैसे 370 हटने के बाद से ही मांग की जा रही थी कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्रा को बहाल किया जाए, जनता को पिफर वोटिंग का अधिकार मिले। अब जनता वोट के अधिकार से राज्य में अपनी सरकार चुनने के लिए जा रही है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू कश्मीर में रेकाॅर्डतोड़ वोटिंग हुई थी। वोटरों ने नेशनल काॅन्प्रफेंस और पीडीपी जैसी पार्टियों को बड़ा झटका दिया था। उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्रती तक अपने सीट नहीं बचा पाई थीं। जेल में रहते हुए उमर अब्दुल्ला को दो लाख से ज्यादा वोटों से हराने वाले निर्दलीय इंजीनियर रशीद ने सबको हैरान किया था। ऐसे में यह सवाल उठा था कि क्या नेशनल काॅन्प्रफेंस और पीडीपी जैसी पार्टियों से कश्मीरियों का दिल भर गया है। विधानसभा चुनाव में यह तस्वीर पूरी तरह से सापफ होने की उम्मीद है। जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों पर 3 पफेज में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। इसके साथ हरियाणा की सभी 90 सीटों पर सिंगल पफेज में 1 अक्टूबर को वोटिंग होगी। दोनों राज्यों के नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव होंगे। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव आखिरी बार दस साल पहले 2014 में हुए थे। इस चुनाव में किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका था। इसके बाद पीडीपी-भाजपा ने गठबंधन कर प्रदेश सरकार बनाई थी। जून 2018 में भाजपा के समर्थन वापस ले लेने से सरकार गिर गई थी। तबसे जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकार नहीं है। 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेश-जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बदल दिया गया। परिसीमन के बाद जम्मू में विधानसभा सीटें बने से भाजपा उत्साहित जम्मू-कश्मीर में इस बार जो चुनाव होने जा रहे हैं, वो पूरी तरह अलग हैं। पांच सालों के अंदर में जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पूरी तरह बदल चुकी है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि अब जम्मू-कश्मीर में परिसीमन संपन्न हो गया है, उस वजह से जम्मू और कश्मीर संभाग में सीटों में परिवर्तन देखने को मिला है। अगर बात करें तो जम्मू-कश्मीर में 83 सीटें होती थीं, तब जम्मू संभाग से ज्यादा कश्मीर संभाग में सीटें थीं। लेकिन वर्तमान सरकार और कुछ जानकारों को यह ठीक नहीं लगा और इसी वजह से परिसीमन करवा जम्मू में भी सीटें बका पफैसला हुआ। अब विपक्ष जरूर आरोप लगाता है कि जम्मू में सीटें का उदेश्य सिपर्फ बीजेपी को मजबूत करना है। असल में जम्मू वो इलाका है जहां पर आज भी बीजेपी की उपस्थिति जबरदस्त है और उसकी सीटें भी इसी क्षेत्रा से निकलती हैं। 370 हटने के बाद पहले विधानसभा चुनाव होंगे। 2020 में परीसीमन के बाद जम्मू संभाग में 6 सीटें और कश्मीर संभाग में 1 सीट जोड़ी गई। इससे विधानसभा की कुल सीट 114 हो गईं, जिनमें से 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर ;पीओजेकेद्ध के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों के लिए तय हैं। बाकी 90 सीटों में से 43 सीटें जम्मू संभाग में और 47 सीटें कश्मीर संभाग में हैं। इस बार इन 90 सीटों पर मतदान होगा। दोनों संभागों की 9 सीटें एसटी के लिए और 7 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने जम्मू-कश्मीर की चुनावी स्थिति का एक खाका खींचा। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर की अवाम तस्वीर बदलना चाहती है। चुनाव के लिए हर किसी में उत्सुकता है। वहीं जम्मू-कश्मीर भाजपा अध्यक्ष रविंदर रैना ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान पर कहा, ‘भाजपा चुनाव आयोग के पफैसले का स्वागत करती है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के इस निर्णय का भाजपा लंबे समय से इंतजार कर रही थी। पिछले 10 सालों में प्रधानमंत्राी मोदी के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में अमन, शांति, भाईचारा मजबूत हुआ है, जम्मू-कश्मीर में विकास हुआ है। लोकसभा चुनाव में रिकाॅर्ड मतदान हुआ, हमें पूरा विश्वास है कि विधानसभा चुनाव भी रिकाॅर्ड मतदान होगा और जिस तरह प्रधानमंत्राी ने जम्मू-कश्मीर में शानदार काम किया है, निश्चित ही जम्मू-कश्मीर में भाजपा की जीत होगी। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की घोषणा पर नेशनल काॅन्प्रफेंस के अध्यक्ष पफारूक अब्दुल्ला ने कहा, ‘मैं ये चुनाव लड़ूंगा, उमर अब्दुल्ला चुनाव नहीं लड़ेंगे। जब राज्य का दर्जा मिल जाएगा तब मैं उतर जाऊंगा और उमर अब्दुल्ला उस सीट से लड़ेंगे। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा है कि हम पूरी तरह से चुनाव को लेकर तैयार है और पूरी तरह से आश्वस्त हैं। उन्होंने कहा कि हम पूरी तरह से आश्वस्त है कि लोग गंभीर मुद्दों को मान्यता देंगे। सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी बैक पफुट पर चल रही है। जिन राज्यों में चुनाव होने हैं जम्मू कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में भाजपा की बड़ी हार होने वाली है।
जम्मू-कश्मीर के साथ हरियाणा भी लोकतंत्रा के उत्सव में रंगा
जम्मू-कश्मीर के साथ हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। हरियाणा की सभी 90 सीटों पर सिंगल पफेज में 1 अक्टूबर को वोटिंग होगी। वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र और झारखंड में आयोग ने विधानसभा चुनाव का कार्यक्रम पिफलहाल तय नहीं किया है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि महाराष्ट्र में त्योहार की वजह से चुनाव बाद में होंगे। उन्होंने झारखंड का जिक्र नहीं किया। हरियाणा सरकार का कार्यकाल 3 नवंबर, महाराष्ट्र का 26 नवंबर और झारखंड का 5 जनवरी को खत्म हो रहा है। हरियाण् ाा में नई सरकार का गठन चार अक्टूबर को होगा। साल 2019 में 21 सितंबर को चुनाव घोषित हुए थे। इस बार 35 दिन पहले विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में पिछली बार की अपेक्षा इस बार करीब एक महीने पहले नई सरकार का गठन हो जाएगा।
हरियाण् ाा विधानसभा की 90 सीटों के लिए पिछले चुनाव यानि 2019 के विधानसभा चुनाव में एक ही चरण में वोट डाले गए थे। हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी और जेजेपी ने निर्दलीयों को साथ लेकर मनोहरलाल खट्टर की अगुवाई में सरकार बनाई थी। जेजेपी के दुष्यंत चैटाला डिप्टी सीएम बनाए गए थे। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने मनोहरलाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को सीएम बना दिया था। बीजेपी ने जेजेपी से गठबंधन भी तोड़ लिया था। हाल के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेजेपी अलग-अलग लड़े। हरियाणा में लोकसभा की 10 सीटें हैं। हालिया लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही दलों को पांच-पांच सीटों पर जीत मिली थी। गौरतलब है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी सीटें जीतकर सूबे में क्लीन स्वीप किया था। जम्मू कश्मीर और हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में भी विधानसभा चुनाव होंगे। महाराष्ट्र में विधानसभा की 288 सीटें हैं। पिछली बार अक्टूबर 2019 में चुनाव हुआ था। तब भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इनके खिलापफ कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन था। चुनाव परिणाम में पूर्ण बहुमत मिलने के बाद भी भाजपा और शिवसेना सरकार गठन नहीं कर पाए थे। बाद में शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी बनाया था और उ(व ठाकरे मुख्यमंत्राी बने थे। सबसे बड़ा दल होने के बाद भी भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा था। महाराष्ट्र की सत्ता में जून 2022 में उस समय बड़ी हलचल शुरू हुई जब एकनाथ शिंदे ने अपने समर्थक विधायकों को लेकर बगावत कर दी। बगावत के 10 दिनों के भीतर उ(व ठाकरे ने शिंदे को पार्टी से निकाल दिया, जिसके कारण महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई। शिंदे ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। 30 जून 2022 को शिंदे मुख्यमंत्राी बने और देवेंद्र पफडणवीस को डिप्टी सीएम बनाया गया। इसके बाद 16 बागी विधायकों की अयोग्यता का केस विधानसभा स्पीकर से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चला। कुछ दिन बाद एनसीपी में ऐसी ही बगावत हो गई। अजित पवार एनसीपी को तोड़कर सरकार में शामिल हो गए। अजित पवार को डिप्टी सीएम बनाया गया। शिवसेना की तरह एनसीपी में भी असली-नकली की लड़ाई लड़ी गई। चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को शिवसेना और उ(व गुट को शिवसेना ;उ(व बाला साहेब ठाकरेद्ध नाम दिया। एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का आधिकारिक नाम ही नहीं, बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित पार्टी का प्रतीक तीर कमान चिह्न भी मिला। इसी तरह, चुनाव आयोग ने अजित पवार गुट को असली एनसीपी माना और शरद पवार के धड़े को अलग नाम दिया। महाराष्ट्र की राजनीति में अभी शिवसेना और एनसीपी, सत्ता में भी हैं और विपक्ष में भी।





