देवभूमि जहां हर घाटी में त्याग की कहानी गूंजती है और हर पर्वत शिखर पर उम्मीद की लौ जलती है, अगले माह 9 नवंबर को अपने गौरवशाली 25 वर्ष पूरे करने जा रही है। यह दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि उन असंख्य संघर्षों, बलिदानों और सपनों की जीवित स्मृति है जिन्होंने उत्तराखंड नाम के इस राज्य को जन्म दिया। 25 वर्ष पहले जब इस धरती ने अलग राज्य के रूप में अपनी पहचान पाई थी, तब उसके साथ जन्मा था एक सपना, अपने पहाड़ों के विकास, अपनी संस्कृति के उत्थान और अपने युवाओं के उज्जवल भविष्य का सपना। आज, जब वह सपना रजत जयंती की रोशनी में चमक रहा है, तो पूरी देवभूमि उत्साह और गर्व से झूम उठी है। रजत जयंती समारोह को लेकर उत्तराखंड के पर्वतों से लेकर तराई के मैदानों तक जश्न का माहौल है। लोग इस पर्व को केवल उत्सव नहीं, बल्कि अपनी पहचान और विकास की यात्रा का उत्सव मान रहे हैं। राजधानी देहरादून इन दिनों रंग, संस्कृति और रोशनी से सजी हुई है। जहां 1 से 9 नवंबर तक ‘रजत जयंती सप्ताह’ के भव्य आयोजन की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार
देवभूमि उत्तराखंड, जिसकी हर बयार में त्याग, परिश्रम और उम्मीद की कहानी गूंजती है। अब उत्तराखंड अगले महीने 9 नवंबर को अपने गौरवशाली 25 वर्ष पूरे करने जा रहा है। यह दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि उस संघर्ष, सपनों और आत्मबलिदान की स्मृति है जिसने पहाड़ों की आवाज को एक पहचान दी । उत्तराखंड नाम से एक नया राज्य। 25 वर्ष पहले जब यह धरती अलग राज्य के रूप में उभरी थी, तब उसके साथ जन्मा था एक सपना । अपने पहाड़ों के विकास, अपनी संस्कृति की पहचान और अपने युवाओं के भविष्य का सपना। आज जब वह सपना रजत जयंती की रोशनी में चमक रहा है, तो पूरा उत्तराखंड गर्व और भावनाओं से भर उठा है। रजत जयंती समारोह को लेकर पूरे देवभूमि के लोगों में जश्न और उत्साह का माहौल है। राज्य अपनी सिल्वर जुबिली को यादगार बनाने जा रहा है। राजधानी देहरादून में 3 से 8 नवंबर तक ‘रजत जयंती सप्ताह’ का भव्य आयोजन होगा, जबकि 9 नवंबर को स्थापना दिवस पूरे प्रदेश में उल्लास, श्रद्धा और स्वाभिमान के साथ मनाया जाएगा। इस दौरान देवभूमि का हर कोना रंग, संगीत, संस्कृति और विकास की झिलमिल रोशनी में नहाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह उत्सव केवल जश्न नहीं, बल्कि उत्तराखंड के 25 वर्षों की विकास गाथा और आने वाले 25 वर्षों की दिशा का संकल्प है। उन्होंने कहा कि राज्य ने शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, उद्योग, सड़क और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में अद्भुत प्रगति की है, और अब यह नया उत्तराखंड आत्मनिर्भरता और नवाचार की राह पर आगे बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री ने सभी नागरिकों से इस ऐतिहासिक पर्व में भाग लेने की अपील की, ताकि यह उत्सव हर घर का पर्व बन सके। मुख्य सचिव आनन्द बर्द्धन ने सचिवालय में अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक कर बताया कि 1 नवंबर से 9 नवंबर तक पूरे प्रदेश में रजत जयंती समारोह का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने कहा, पिछले 25 वर्षों की उपलब्धियों के साथ हमें अगले 25 वर्षों की दिशा भी तय करनी है। बर्द्धन ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि यह उत्सव केवल सरकारी कार्यक्रम न रह जाए, बल्कि इसमें जनभावनाओं, श्रमिकों, किसानों, महिलाओं, युवाओं और सैनिकों की सशक्त भागीदारी सुनिश्चित की जाए। हर दिन एक नई थीम, नया संदेश और नई ऊर्जा लेकर आएगा। पर्वतों की गोद से लेकर तराई के खेतों तक, यह उत्सव उत्तराखंड की उस अस्मिता को फिर से जीवित करेगा जिसने पहाड़ों को आवाज दी थी। यह केवल एक जयंती नहीं, बल्कि जनभागीदारी, संस्कृति, विकास और आत्मगौरव का जीवंत प्रतीक है।
धामी सरकार ने राज्य स्थापना दिवस पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया

उत्तराखंड राज्य की स्थापना की रजत जयंती के अवसर पर आयोजित होने वाला राज्य विधानसभा का विशेष सत्र तीन और चार नवंबर को देहरादून में आयोजित किया जाएगा। राज्य विधानसभा सचिवालय द्वारा रविवार को इस संबंध में अधिसूचना जारी की गई, जिसमें कहा गया है कि उत्तराखंड की पंचम विधानसभा का वर्ष 2025 का ‘विशेष सत्र’ तीन और चार नवंबर को आहूत किया गया है। 9 नवंबर 2000 को गठित उत्तराखंड राज्य इस साल अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर रहा है। दरअसल उत्तराखंड राज्य आगामी नौ नवंबर को अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे करने जा रहा है। रजत जयंती पर विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र तीन नवंबर से देहरादून में आयोजित किया जा रहा है। राजभवन से हरी झंडी मिलने के बाद विधानसभा सचिवालय ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है। विशेष सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के भी आने की संभावना है। ऐसा माना जा रहा है कि राज्य की पुष्कर धामी सरकार इस दौरान प्रदेश के लिए कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों को मंजूरी दे सकती है।
5 नवंबर को देहरादून में प्रवासी उत्तराखंडी सम्मेलन आयोजित होगा
उत्तराखंड राज्य स्थापना के रजत जयंती वर्ष पर प्रदेश एक ऐतिहासिक आयोजन का गवाह बनने जा रहा है। 5 नवंबर को दून विश्वविद्यालय, देहरादून में प्रवासी उत्तराखंडी सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। यह एक दिवसीय सम्मेलन न केवल उत्तराखंड की 25 वर्षों की विकास यात्रा पर मंथन करेगा, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए राज्य के विकास का नया रोडमैप तय करने का भी अवसर प्रदान करेगा। इस सम्मेलन में देश और विदेश में बसे प्रवासी उत्तराखंडी अपने विचारों, अनुभवों और सुझावों के माध्यम से यह साझा करेंगे कि आने वाले समय में उत्तराखंड को और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है। राज्य के भविष्य की दिशा तय करने में प्रवासियों की भूमिका को अहम माना जा रहा है। अब तक विभिन्न राज्यों से 600 से अधिक प्रवासी उत्तराखंडी पंजीकरण करा चुके हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर प्रवासी सम्मेलन के आयोजन की यह परंपरा शुरू की गई थी। वर्ष 2024 में आयोजित पहले प्रवासी उत्तराखंडी सम्मेलन में 17 राज्यों के 200 प्रतिभागियों ने भाग लिया था। इस बार प्रतिभागियों की संख्या में वृद्धि की पूरी संभावना है। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि प्रवासी उत्तराखंडियों को एक मंच पर लाना और उन्हें राज्य के विकास में सहभागी बनाना इस सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य है। हम प्रवासियों को केवल दर्शक नहीं, बल्कि विकास यात्रा के सक्रिय साझेदार बनाना चाहते हैं। रजत जयंती वर्ष में उनका अनुभव और सुझाव हमारे लिए मार्गदर्शक होंगे।
पिछले 25 वर्ष में उत्तराखंड ने कई उतार-चढ़ाव देखे
25 वर्ष किसी राज्य के इतिहास में यह केवल वर्षों की गणना नहीं होती, बल्कि संघर्ष, सपनों और उम्मीदों की एक सजीव गाथा होती है। उत्तराखंड की यह यात्रा भी कुछ ऐसी ही रही है । जहां हर मोड़ पर कठिनाइयां थीं, पर हर पहाड़ ने एक नई प्रेरणा दी। 9 नवंबर 2000 जब उत्तराखंड भारत के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, तो यह केवल एक प्रशासनिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि जनता की दशकों लंबी आकांक्षाओं का साकार रूप था। अलग राज्य की मांग के पीछे एक भावना थी । विकास की वह रोशनी जो अब तक पहाड़ों तक नहीं पहुंच पाई थी, उसे हर गांव, हर घाटी तक ले जाना। पिछले 25 वर्षों में इस राज्य ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। प्राकृतिक आपदाएं, पलायन, बेरोजगारी और भौगोलिक चुनौतियों ने समय-समय पर इस नवोदित राज्य की परीक्षा ली। लेकिन हर बार उत्तराखंड ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से खुद को संभाला और आगे बढ़ाया। 2013 की केदारनाथ त्रासदी ने जहां पूरे देश को झकझोर दिया, वहीं उसी त्रासदी की राख से पुनर्निर्माण की गाथा भी जन्मी। यही उत्तराखंड की असली पहचान है । हार न मानने वाली भूमि।
इन वर्षों में राज्य ने शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। पहाड़ों की बेटियां अब सेना से लेकर विज्ञान तक हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ रही हैं। पर्यटन ने न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को गति दी है, बल्कि उत्तराखंड को देवभूमि से एडवेंचर डेस्टिनेशन” तक का रूप दिया है। फिर भी, चुनौतियां शेष हैं। पलायन का दर्द आज भी कई गांवों को वीरान कर रहा है। जल, जंगल और जमीन की रक्षा करते हुए विकास का नया मॉडल गढ़ना अब अगली पीढ़ी की जिम्मेदारी है। विकास की दौड़ में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तराखंड की आत्मा उसकी प्रकृति, उसकी संस्कृति और उसके सरल जनमानस में बसती है। आज जब हम इस सिल्वर जुबिली वर्ष की दहलीज पर खड़े हैं, तो यह सिर्फ उत्सव का नहीं, आत्ममंथन का भी समय है। क्या हमने अपने पहाड़ों की उम्मीदों को पूरा किया है। क्या हमने उस त्याग और बलिदान को याद रखा है, जिसने हमें यह पहचान दी।उत्तराखंड की 25 वर्ष की यह यात्रा एक संदेश देती है कि संघर्ष चाहे कितना भी ऊंचा क्यों न हो, अगर संकल्प सच्चा है तो हर शिखर जीता जा सकता है। यही भावना इस भूमि की पहचान है।






