देवउठान के साथ गूंज उठी शहनाई और बैंड-बाजे

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(देवउठान एकादशी के साथ ही अब शादी-ब्याह का शुभ सीजन औपचारिक रूप से शुरू हो गया है। चार महीने के चातुर्मास के बाद जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागे, तो पूरे उत्तर भारत में घर-आंगन से लेकर मंदिरों तक उल्लास और शुभकार्य का माहौल छा गया। देवउठान के साथ ही विवाह, सगाई, गृहप्रवेश, नामकरण और अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत मानी जाती है। देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, ऋषिकेश और कुमाऊं-गढ़वाल के पहाड़ी इलाकों में बैंड-बाजे और शहनाई की धुनें गूंजने लगीं। शादी-समारोह स्थलों, बैंकेट हॉल और मंदिरों में रौनक लौट आई है। देवउठान एकादशी से अगले कई सप्ताह तक विवाह मुहूर्तों की भरमार रहेगी। इस दौरान हजारों शादियाँ संपन्न होंगी और होटल-लॉन से लेकर घोड़ी-बग्गी तक की बुकिंग पहले से फुल हो चुकी है। लंबे इंतजार के बाद लोग अब खुलकर जश्न मनाने को तैयार हैं । देवउठान के इस मंगल दिन से शुरू हुआ शुभ समय अब पूरे समाज में खुशियों की गूंज लेकर आया है। दिव्य हिमगिरि रिपोर्ट)

चार महीने के चातुर्मास के समापन के साथ देवउठान एकादशी के दिन भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागते ही पूरे देश में उल्लास और शुभकार्य का माहौल छा गया। परंपरा के अनुसार, देवउठान एकादशी के बाद ही विवाह, सगाई, गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। जैसे ही भगवान विष्णु का ‘जागरण’ हुआ, वैसे ही मंदिरों की घंटियां, शहनाइयों की गूंज और बाजारों की चहल-पहल ने पूरे देश को उत्सव के रंग में रंग दिया।देवउठान एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं, और इसी के साथ शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत होती है। इस दिन तुलसी विवाह का विशेष महत्व है, जो भगवान विष्णु और देवी तुलसी के प्रतीकात्मक मिलन का प्रतीक है। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन देव जगाने की परंपरा है। यानी पिछले चार महीने से योग निद्रा में सोए भगवान विष्णु को शंख बजाकर जगाया जाता है। दिनभर महापूजा चलती है और आरती होती है। वामन पुराण का कहना है कि सतयुग में भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन कदम जमीन दान में मांगी थी। फिर अपना कद बढ़ाकर दो कदम में पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिए जगह नहीं बची तो बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। सिर पर पैर रखते ही बलि पाताल में चले गए। भगवान ने खुश होकर उन्हें पाताल का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा। बलि ने कहा आप मेरे महल में रहिए, भगवान ने ये वरदान दे दिया, लेकिन लक्ष्मी जी ने बलि को भाई बनाया और विष्णु को वैकुंठ ले गईं। जिस दिन विष्णु-लक्ष्मी वैकुंठ गए उस दिन ये ही एकादशी थी। वृंदा के श्राप से विष्णु बने पत्थर के शालग्राम शिव पुराण के मुताबिक जालंधर नाम के राक्षस ने इंद्र को हराकर तीनों लोक जीत लिए। शिवजी ने उसे देवताओं का राज्य देने को कहा लेकिन वो नहीं माना। शिवजी ने उससे युद्ध किया लेकिन उसके पास पत्नी वृंदा के सतीत्व की ताकत थी। इस कारण जालंधर को हराना मुश्किल था। तब विष्णु जी ने जालंधर का ही रूप लिया और वृंदा के साथ रहकर उसका सतीत्व तोड़ दिया। जिससे जालंधर मर गया। वृंदा को ये पता चला तो उन्होंने विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया। लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को श्राप से छुटाने के लिए वृंदा से विनती की। वृंदा ने विष्णु को हमेशा अपने पास रहने की शर्त पर मुक्ति दी और खुद सती हो गई।
वृंदा की राख से जो पौधा बना ब्रह्माजी ने उसे तुलसी नाम दिया। विष्णु ने भी तुलसी को हमेशा शालग्राम रूप में साथ रहने का वरदान दिया। तब से तुलसी-शालग्राम विवाह की परंपरा चल रही है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का समय भगवान विष्णु की शयन अवधि यानी चातुर्मास कहलाता है। इस दौरान विवाह और मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं।देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु के जागरण के साथ ही सभी शुभ कार्यों का आरंभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत का फल हजारों अश्वमेध यज्ञों और सैकड़ों राजसूय यज्ञों के बराबर होता है। यह व्रत पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति कराने वाला माना गया है।

देवउठान एकादशी ने उत्सव-उल्लास और उमंग से भर दिया

देवउठान एकादशी ने पूरे देश को उत्सव, उल्लास और उमंग से भर दिया है। उत्तराखंड के पहाड़ी गांवों से लेकर दिल्ली-मुंबई के महानगरों तक शहनाइयों की गूंज, सजी गलियां और बाजारों की रौनक इस बात का संकेत हैं कि चार महीने का ठहराव अब खत्म हो चुका है । और अब देशभर में खुशियों की बारात निकल पड़ी है। देहरादून से लेकर पिथौरागढ़ तक, हरिद्वार से लेकर चमोली और टिहरी तक उत्तराखंड के पहाड़ और मैदान देवउठान की खुशी में झूम उठे। मंदिरों में तुलसी विवाह की रस्में हुईं और बारात की तैयारियां शुरू हो गईं। केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत के सभी राज्यों । उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर में भी देवउठान एकादशी के बाद से शादियों का मौसम चरम पर है। देवउठान एकादशी के बाद देशभर में विवाह सीजन ने रफ्तार पकड़ ली है। बैंड-बाजा बारात के लिए समय आ गया है। अगर इस साल शादी या किसी शुभ काम की तैयारी है, तो इन तारीखों को नोट करके पहले से तैयारी कर लें। पंचांग के अनुसार नवंबर में 14 शुभ मुहूर्त और दिसंबर में दो शादी की तारीखें हैं। इसके बाद खरमास और शुक्र अस्त के कारण डेढ़ महीने तक विवाह रुक जाएंगे। अगला शुभ समय फरवरी 2026 से मिलेगा। नवंबर के प्रमुख विवाह मुहूर्त 18 नवंबर, 22 नवंबर, 23 नवंबर, 24 नवंबर, 25 नवंबर, 29 नवंबर, 30 नवंबर हैं। दिसंबर महीने में शादी के लिए सिर्फ दो शुभ मुहूर्त चार दिसंबर और पांच दिसंबर हैं। इसके बाद खरमास और शुक्र अस्त के चलते लगभग डेढ़ महीने तक शादी-विवाह पर रोक लग जाएगी। इसके बाद फरवरी 2026 शादी के लिए चार, पांच, छह, सात, 10, 11, 12, 13, 19, 20, 21, 24, 25, 26 प्रमुख तारीखें रहेंगी। शादी-समारोहों का ऐसा जश्न इस साल कई साल बाद देखने को मिल रहा है। बैंड-बाजे, हलवाई, डेकोरेटर, ज्वेलर्स और टूर एंड ट्रैवल्स सभी के पास ऑर्डर की बाढ़ है। इस वर्ष देव दीपावली, कार्तिक पूर्णिमा, गंगा स्नान और गुरु नानक जयंती का पावन पर्व 5 नवंबर बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन सिद्धि योग, विष्टि करण, अश्विनी और भरणी नक्षत्र का योग रहेगा। चंद्रमा मेष राशि में और गुरु अपनी उच्च कर्क राशि में होंगे, जिससे यह दिवस अत्यंत शुभ है। कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली तब मनाई जाती है जब देवता श्रीहरि विष्णु के जागरण उपरांत पृथ्वी पर उतरकर जलाशयों में दीपोत्सव करते हैं।

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