कभी राम तेरी गंगा मैली में रोई थी…और आज फिर धरती पर आँसू बहा रही है।

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भागीरथी के किनारे, देवभूमि उत्तराखंड की गोद में बसा हर्षिल और धराली—ये सिर्फ भूगोल नहीं हैं, ये भावना हैं। ये वो स्थान हैं जहाँ हिमालय की शांति, गंगा की पवित्रता और मानवीय संवेदना का संगम होता है। लेकिन समय की धार और प्रकृति की मार ने इस स्वर्ग जैसे क्षेत्र को आज शोक की छाया में ढंक दिया है।

1985 में, एक फ़िल्म आई—”राम तेरी गंगा मैली”, और इसके साथ ही भारत के करोड़ों लोगों ने पहली बार देखा उस स्वर्ग को, जिसे हर्षिल, धराली, और भागीरथी नदी कहते हैं। राज कपूर जैसे महान निर्देशक ने इस फिल्म के ज़रिए न सिर्फ प्रेम की कहानी सुनाई, बल्कि गंगा की व्यथा, संवेदनशीलता, और शुद्धता की पीड़ा को परदे पर उतारा।

मंदाकिनी के उस दृश्य में जब वह भागीरथी में स्नान कर रही थीं, तो न केवल उनकी मासूमियत ने दर्शकों का मन छू लिया, बल्कि आसपास की वादियों की पवित्रता और सौंदर्य ने भी एक अमिट छाप छोड़ी। उस समय किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह इलाका किसी फिल्म से नहीं, गंगा से अपनी पहचान बनाएगा—गंगा, जो जीवन देती है… और कभी-कभी उसे छीन भी लेती है।

आज वही धराली, वही हर्षिल, जहाँ एक समय कैमरे और कलाकारों की रौनक हुआ करती थी, मलबे और मातम की चुप्पी में डूब गया है। 5 अगस्त 2025 की त्रासदी ने इन पहाड़ियों को लहूलुहान कर दिया। भागीरथी अब केवल मोक्ष की नहीं, विपदा की भी साक्षी बन चुकी है। राज कपूर की फिल्म में जो “गंगा के मैल” की बात थी, वो अब वास्तविक मलबे और मानवीय दर्द में बदल चुकी है।

राज कपूर ने इस फिल्म से एक गहरी बात कही थी—”गंगा केवल नदी नहीं है, यह भारत की आत्मा है।” आज जब धराली है, घर बहे हैं, और लोग छत की तलाश में हैं—तो लगता है जैसे गंगा खुद रो रही है। जैसे उसकी आत्मा फिर से मैली हो गई है—इस बार किसी फिल्म के लिए नहीं, बल्कि हकीकत में।

हमें याद रखना होगा कि प्राकृतिक सुंदरता स्थायी नहीं है, लेकिन मानवता और संवेदना को हम स्थायी बना सकते हैं। हर्षिल और धराली को फिर से संवारना होगा—केवल सरकार से नहीं, हम सबकी सामूहिक चेतना और सहयोग से।

यह लेख उस गंगा के नाम,
जो कभी राम तेरी गंगा मैली में रोई थी…
और आज फिर धरती पर आँसू बहा रही है।
चित्र : धराली गांव 5 अगस्त 2025 से पहले

शीशपाल गुसाईं

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