Thursday, November 6, 2025
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एसोसिएशन आफ सेल्फ फाइनेंसड इंस्टीट्यूटस उत्तराखंड के अध्यक्ष डाॅ सुनील अग्रवाल ने यूजीसी के अध्यक्ष द्वारा काॅलेजों में कोई सीट खाली न रखने के आदेश की सराहना करते हुए कहा की प्रदेश के विश्वविद्यालयों एवं शासन के अधिकारियों का छात्रों के प्रति सकारात्मक रवैया नहीं रहता है। विश्वविद्यालय में यूजीसी की एस.ओ.पी. के बावजूद बीएड कोर्स में सीटें खाली रही और विश्वविद्यालय ने खाली सीटों को भरने की अनुमति नहीं दी। इस निर्णय खिलापफ काॅलेजों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी और अब वह रिक्त सीटंे न्यायालय के आदेश से भरी जा रही है इसी प्रकार राज्य विश्वविद्यालयों हेतु समर्थ पोर्टल के माध्यम से रजिस्ट्रेशन 14 जुलाई तक हुए जबकि काॅलेजों में सीटें खाली हैं। जो छात्रा अन्य कोर्सों में प्रवेश के प्रयास के बाद ट्रेडिशनल कोर्स हेतु राज्य विश्वविद्यालय का रुख करते हैं उनके लिए समर्थ पोर्टल की तिथि नहीं बढाई गई जो की यूजीसी कि इस भावना के काॅलेज में सीटे खाली नहीं रहनी चाहिए के विपरीत है। विश्वविद्यालयों के अधिकारी छात्र समस्याओं के प्रति संवेदनशील नहीं रहते। इसी कारण पिछले दिनों गढवाल विश्वविद्याल में छात्रों का आंदोलन देखने को मिला। छात्रों के रिजल्ट से संबंधित समस्याएं कई कई साल तक पेंडिंग रहती हैं लेकिन अधिकारी उनको सुलझाने का प्रयास ही नहीं करते हैं। जब अपनी छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान छात्रा विश्वविद्यालय के अधिकारियों से नहीं पाते हैं तो उनमें निराशा होना स्वाभाविक है। परीक्षाएं देने के बाद रिजल्ट समय से प्राप्त करना छात्रों का अधिकार है, लेकिन ऐसे कई प्रकरण है जिसमें विश्वविद्यालय को छात्रों द्वारा समस्त प्रमाण प्रस्तुत करने के बावजूद अधिकारियों की लापरवाही के कारण रिजल्ट घोषित नहीं किए गए हैं। इसी तरह से श्री देव सुमन विश्वविद्यालय से संबंधित काॅलेजों को विश्वविद्यालय के निरीक्षण के उपरांत भी कई-कई वर्ष तक प्रमाण नहीं मिलते हैं जिससे उन काॅलेज में पढ़ने वाले छात्रों को छात्रावृत्ति भी नहीं मिल पाती है। इस संबंध में भी संबंधित अधिकारी संबद्धता की फाइलों को समय से निस्तारण करने में रुचि नहीं रखते हैं। यूजीसी और अदालतों के आदेश यही भावना रखते हैं कि काॅलेजों में सीट खाली नहीं रखनी चाहिए। लेकिन संबंधित अधिकारियों के रवैये के कारण छात्रा और काॅलेज संचालक शोषण का शिकार हैं जिस कारण छात्रों का रुख निजी विश्वविद्यालयों की तरफ अधिक हो चुका है। विश्वविद्यालयों एवं शासन को गंभीरता से छात्रों के हित के प्रति विचार करते हुए निर्णय करने चाहिए।

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