देश की शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आरक्षण में कोटे के अंदर कोटा को मंजूरी दे दी है। अब राज्य सरकारें अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के अंदर अलग-अलग समूहों को आरक्षण दे सकेगी। इसके जरिए एससी-एसटी की उन जातियों को फायदा मिलेगा जो पीछे रह गई है और सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद प्रदेश सरकार अनुसूचित जातियों में शामिल अन्य जातियों को भी कोटे में कोटा दे सकेगी। इससे आरक्षण का लाभ उन्हीं लोगों को मिलने की संभावना बढ़ जाएगी जिन्हें वास्तव में इसकी सख्त जरूरत है। हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में उसने ये भी साफ किया है कि राज्य अपनी मर्जी और राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आधार पर फैसला नहीं ले सकते। अगर ऐसा होता है तो उनके पफैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। पेश है वरिष्ठ पत्राकार स्तंभकार शंभू नाथ गौतम की रिर्पाेट
देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने एससी, एसटी वर्ग को ‘आरक्षण में आरक्षण’ देने के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दलितों और आदिवासियों में पिछड़ी जातियों को राज्य आरक्षण के भीतर अधिक आरक्षण दे सकते हैं। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान बेंच ने किया है। गुरुवार को सुनवाई करते हुए सर्वाेच्च अदालत ने कहा कि राज्य एससी-एसटी को दिए जाने वाले आरक्षण के भीतर ऐसी जातियों को ज्यादा प्राथमिकता दे सकते हैं, जो आर्थिक-सामाजिक रूप से अधिक पिछड़ गई हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्यों को कोटा के भीतर कोटा देने के लिए एससी-एसटी में सब कैटेगिरी बनाने का अधिकार है। अदालत के पफैसले के बाद यह तय हो गया कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं। इससे आरक्षण का लाभ उन्हीं लोगों को मिलने की संभावना बढ़ जाएगी जिन्हें वास्तव में इसकी सख्त जरूरत है। राज्य विधानसभाएं कानून बनाने में समक्ष होंगी। हालांकि कोर्ट ने अपने पफैसले में उसने ये भी सापफ किया है कि राज्य अपनी मर्जी और राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आधार पर पफैसला नहीं ले सकते। अगर ऐसा होता है तो उनके पफैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने पफैसला सुनाया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि एससी-एसटी कोई एक एक सजातीय समूह नहीं है और इस बात के सबूत भी हैं। उन्होंने कहा कि आरक्षण के भीतर आरक्षण देने से संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं होता। उन्होंने कहा कि इस मामले में 6 निर्णय पहले भी आ चुके हैं और सभी में इस बात को माना गया है कि आरक्षण के भीतर आरक्षण देना सही है। कोर्ट ने यह निर्णय सुनाने के साथ ही सापफ कर दिया कि किसी एक जाति को 100% आरक्षण ना दिया जाए। साथ ही कोर्ट ने यह साफ किया आरक्षण के भीतर आरक्षण देने के दौरान जातियों को सूची से अंदर-बाहर करने का निर्णय तुष्टिकरण के लिए न लिया जाए। अगर कोई राज्य किसी जाति को कोटे के अंदर कोटा देती है तो उसे साबित करना होगा कि ऐसा पिछड़ेपन के आधार पर ही किया गया है। ये भी देखा जाएगा कि किसी एससी-एसटी के कुल आरक्षण का उसके किसी एक वर्ग को ही 100% कोटा न दे दिया जाए। हालांकि, जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस पफैसले से असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि यह देखा गया कि आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में स्टेटवाइज रिजर्वेशन के कानूनों को हाईकोट्र्स ने असंवैधानिक बताया है। आर्टिकल 341 को लेकर यह कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि राष्ट्रपति की अधिसूचना अंतिम मानी जाती है। केवल संसद ही कानून बनाकर सूची के भीतर किसी वर्ग को शामिल या बाहर करती है। अनुसूचित जाति कोई साधारण जाति नहीं है, यह केवल आर्टिकल 341 की अधिसूचना के जरिए अस्तित्व में आई है। अनुसूचित जाति वर्गों, जनजातियों का एक मिश्रण है और एक बार अधिसूचित होने के बाद एक समरूप समूह बन जाती है। राज्यों का सब-क्लासिपिफकेशन आर्टिकल 341(2) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के साथ छेड़छाड़ करने जैसा होगा। बता दें कि कोटा के भीतर कोटा का मतलब है आरक्षण के पहले से आवंटित प्रतिशत के भीतर एक अलग आरक्षण व्यवस्था लागू करना। यह मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि आरक्षण का लाभ समाज के सबसे पिछड़े और जरूरतमंद समूहों तक पहुंचे, जो आरक्षण प्रणाली के तहत भी उपेक्षित रह जाते हैं। इसका उद्देश्य आरक्षण के बड़े समूहों के भीतर छोटे, कमजोर वर्गों का अधिकार सुनिश्चित करना कि वे भी आरक्षण का लाभ उठा सकें। उदाहरण के लिए अनुसूचित जाति ;एससीद्ध और अनुसूचित जनजाति ;एसटीद्ध के भीतर अलग-अलग समूहों को आरक्षण दिया जा सकता है ताकि उन समूहों को ज्यादा प्रतिनिधित्व और लाभ मिल सके जो सामाजिक या आर्थिक रूप से ज्यादा वंचित हैं। अगर हम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में एससी एसटी की बात करें तो आंकड़ों के हिसाब से ऐसी स्थित है। उत्तर प्रदेश में दलित जाटव और गैर-जाटव में बंटे हुए हैं। कुल आबादी में जाटव 12% और गैर-जाटव 10% हैं। दलितों की कुल आबादी में 56 फीसदी जाटव ही हैं। जाटवों के अलावा दलितों की बाकी उपजातियों में पासी 16 फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसदी और गोंड, धानुक और खटीक करीब 5 फीसदी हैं। वहीं, गैर-जाटव दलितों में वाल्मीकि, खटीक, पासी, धोबी और कोरी समेत तमाम उपजातियां हैं। वही उत्तराखंड की आबादी में 55 फीसदी से ज्यादा ठाकुर और ब्राह्मण हैं। ओबीसी 18 फीसदी हैं, जबकि एससी-एसटी की हिस्सेदारी 22 फीसदी है। हरिजन और वाल्मीकि दो सबसे बड़ी दलित जातियां हैं। जबकि, जौनसारी और थारू राज्य का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है।
कई दशकों पहले कोटा के अंदर कोटा की मांग उठाई गई थी
अनुसूचित जाति समूह के भीतर जातियों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने का इतिहास दशकों पुराना है। वर्ष 1960 में कोटे के अंदर कोटा की मांग आंध्र प्रदेश में उठी थी, जो कई सालों तक चली। इसके बाद 1997 में तब की आंध्र प्रदेश सरकार ने न्यायमूर्ति पी रामचंद्र राजू आयोग का गठन किया, जिसने कहा था कि आरक्षण का लाभ बड़े पैमाने पर अनुसूचित जातियों के बीच एक विशेष जाति के पास गया है और इसलिए, एससी को चार समूहों में वर्गीकृत करने की सिपफारिश की। 1998 में तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार ने अनुसूचित जातियों में एक सब कैटेगरी बनाने का एक प्रस्ताव पास किया। 2001 में यूपी सरकार ने हुकम सिंह समिति का गठन किया, जिसने कहा कि आरक्षण का लाभ सबसे अधिक वंचित वर्गों के लोगों तक नहीं पहुंचा है। इसमें कहा गया कि यादवों को अकेले नौकरियों का अधिकतम हिस्सा मिला है। इस समिति ने भी एससी/ओबीसी की सूची की सब कैटेगरी बनाने की सिपफारिश की थी। 2005 में कर्नाटक सरकार ने न्यायमूर्ति एजे सदाशिव पैनल की स्थापना की, जिसमें एससी जातियों के बीच उन जातियों की पहचान करने पर जोर दिया गया, जिन्हें कोटा से लाभ नहीं मिला। पैनल ने 101 जातियों को चार श्रेणियों में विभाजित करने की सिपफारिश की। 2006 में तब की केंद्र सरकार ने सब कैटेगरी के लिए एक पैनल बनाने का निर्णय लिया। 2007 में ऊषा मेहरा को इस पैनल का अध्यक्ष बनाया गया। 2007 में ही बिहार के महादलित पैनल ने भी ऐसी सिपफारिशें की। इसमें कहा गया कि एससी की 18 जातियों को अत्यंत कमजोर जातियों के रूप में माना जाना चाहिए। 2008 में ऊषा मेहरा ने केंद्र को रिपोर्ट सौंपी। 2009 में यूनाइटिड आंध्र प्रदेश से सीएम वाईएस राजाशेखर रेड्डी ने केंद्र को पत्रा लिख इसे संविधानिक गारंटी देने की मांग की। 2014 में तेलंगाना के बनने के बाद केसीआर ने एक प्रस्ताव पास कर केंद्र से सब कैटेगरी बनाने की मांग की। 2023 में सिकंदराबाद की एक सभा में पीएम मोदी ने कहा कि वो कोटे के अंदर कोटे को सपोर्ट करेंगे। 1 अगस्त 2024 को एतिहासिक पफैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पफैसला सुनाया कि राज्य सरकार कोटे के अंदर कोटा बना सकते हैं। आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के सीएम रेवंथ रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट के इस पफैसले का स्वागत किया है। रेवंथ रेडृडी और नायडू ने सब कैटेगरी को सही ठहराते हुए कहा कि उनकी सरकार जल्द ही इसे लागू करने पर काम करेगी।





