उत्तराखंड में मदरसा बोर्ड की विदाई

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उत्तराखंड की धामी सरकार ने एक ऐतिहासिक और साहसिक कदम उठाते हुए राज्य के मदरसा बोर्ड को समाप्त करने का निर्णय लिया है। लंबे समय से चर्चा में रहे इस मुद्दे पर आखिरकार धामी सरकार ने मुहर लगा दी। सरकार का मानना है कि यह फैसला राज्य में समान शिक्षा व्यवस्था को मजबूती देगा और सभी शिक्षण संस्थानों में एक समान पाठ्यक्रम लागू करने की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा। मदरसा बोर्ड के भंग होने के बाद अब राज्य के मदरसों का संचालन सीधे शिक्षा विभाग की निगरानी में होगा। सरकार का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना, आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देना और विद्यार्थियों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ना है। इस निर्णय के साथ ही धार्मिक शिक्षा संस्थानों के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया भी तेज होने की उम्मीद है। धामी सरकार का यह फैसला न केवल प्रशासनिक सुधार की दिशा में अहम माना जा रहा है, बल्कि यह उत्तराखंड की शिक्षा प्रणाली में एक नए अध्याय की शुरुआत भी है । जहां धार्मिक और आधुनिक शिक्षा के बीच की दीवारें धीरे-धीरे खत्म होती दिख रही हैं। दिव्य हिमगिरि की रिपोर्ट।

उत्तराखंड सरकार ने राज्य के मदरसा बोर्ड को भंग करने का बड़ा निर्णय लेकर एक नई शिक्षा नीति की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक में यह फैसला लिया गया, जिसके तहत अब राज्य में मदरसा बोर्ड के सभी अधिकार और कार्य शिक्षा विभाग के अधीन आ जाएंगे। सरकार का तर्क है कि यह कदम समान शिक्षा, समान अवसर” के सिद्धांत को मजबूत करेगा और मदरसों के छात्रों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ेगा। सरकार पिछले कुछ महीनों से मदरसा बोर्ड की गतिविधियों, उसकी संरचना और वित्तीय अनियमितताओं को लेकर अध्ययन कर रही थी। जांच में यह पाया गया कि कई मदरसों में मानकों का पालन नहीं हो रहा था, साथ ही शिक्षण व्यवस्था भी पुरानी पद्धति पर आधारित थी। इन कमियों को देखते हुए बोर्ड को समाप्त करने और नई व्यवस्था लागू करने का निर्णय लिया गया है। राज्‍य के मुख्‍यमंत्री पुष्‍कर धामी ने एलान कर दिया है कि अगर मदरसों का पाठ्यक्रम सरकारी बोर्ड के अनुरूप नहीं हुआ तो फिर उन पर ताला लगा दिया जाएगा। उन्‍होंने उत्तराखंड को देवभूमि बताते हुए मदरसों में अवैध गतिविधियों का केंद्र बताया है। सीएम पुष्कर धामी ने मदरसों पर एक बड़ा फैसला लिया है. उनका कहना है कि उत्तराखंड देवभूमि है जहां हर जगह देवस्थान, नदियां, पर्वत और ग्लेशियर नजर आएंगे। हम चाहते हैं कि यहां के नौनिहालों को सही संस्कार और शिक्षा मिले। कई मदरसे अवैध रूप से संचालित हो रहे थे और उनमें पढ़ाई का स्तर मानक के अनुरूप नहीं था। हमारी प्राथमिकता बच्चों को समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना है। अब मदरसों का पंजीकरण, निरीक्षण और वित्तीय सहायता जैसे सभी कार्य शिक्षा विभाग के अधीन आएंगे। इस कदम से मदरसों में आधुनिक विषयों जैसे विज्ञान, गणित, हिंदी और अंग्रेजी की पढ़ाई को बढ़ावा देने की योजना है, ताकि छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं और रोजगार के अवसरों में समान भागीदारी मिल सके। राज्य सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि आगामी महीनों में मदरसों के पाठ्यक्रम में बड़े बदलाव किए जाएंगे। नए ढांचे के तहत धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर भी जोर दिया जाएगा। सरकार का उद्देश्य है कि कोई भी बच्चा केवल एक सीमित दायरे में न रह जाए, बल्कि उसे हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर मिले। इस फैसले पर जहां कुछ संगठनों ने इसे सुधारात्मक कदम” बताया है, वहीं कुछ धार्मिक संगठनों ने चिंता व्यक्त की है कि इससे पारंपरिक शिक्षा प्रणाली पर असर पड़ सकता है। हालांकि, सरकार का कहना है कि यह कदम किसी के खिलाफ नहीं बल्कि राज्य के हर बच्चे के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए है। मदरसा बोर्ड के भंग होने के साथ ही उत्तराखंड अब उन कुछ राज्यों की सूची में शामिल हो गया है, जहां धार्मिक शिक्षा संस्थानों को सीधे सरकारी शिक्षा व्यवस्था से जोड़ा गया है। यह फैसला राज्य की शिक्षा प्रणाली में एक नए युग की शुरुआत माना जा रहा है, जो पारदर्शिता, आधुनिकता और समान अवसरों की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। उत्तराखंड की सरकार ने राज्‍य के अवैध मदरसों पर एक बड़ा फैसला लिया है। उत्तराखंड में धामी सरकार के अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक, 2025 को मंजूरी मिल गई है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह की मंजूरी के बाद अब यह बिल एक कानून की शक्ल ले चुका है। इसके साथ ही मदरसा बोर्ड को खत्म कर दिया जाएगा और सभी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के लिए एक समान कानून लागू होगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, राज्यपाल की मंजूरी के साथ, इस विधेयक के कानून बनने का रास्ता साफ हो गया है। उन्होंने ‘एक्स’ पर कहा, इस कानून के तहत, अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा प्रणाली के लिए एक अथॉरिटी (प्राधिकरण) बनाई जाएगी, जो अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मान्यता देगी। मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा, यह कानून निश्चित रूप से राज्य में शिक्षा प्रणाली को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और गुणवत्तापूर्ण बनाने में मदद करेगा। बयान में कहा गया है कि इस विधेयक के लागू होने के साथ, मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 और गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियम, 2019, 1 जुलाई, 2026 को समाप्त हो जाएंगे। इस साल अगस्त में राज्य कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद, यह विधेयक उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में आयोजित विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान पारित किया गया था। बयान में कहा गया है कि इस विधेयक के तहत, मुस्लिम समुदाय के संस्थानों के साथ-साथ अन्य अल्पसंख्यक समुदायों जैसे सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी से संबंधित शिक्षण संस्थानों को भी राज्य में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा मिलेगा। इसमें यह भी कहा गया है कि अभी तक अल्पसंख्यक संस्थानों को मान्यता केवल मुस्लिम समुदाय तक ही सीमित थी।

प्रदेश के कई मदरसों में छात्रवृत्ति घोटाले और सरकारी धन के दुरुपयोग के आरोप लगे

प्रदेश की धामी सरकार के इस फैसले के पीछे की असली कहानी राज्य के भीतर चल रहे मदरसा स्कॉलरशिप घोटाले से भी जुड़ी हुई मानी जा रही है। जानकारी के अनुसार, राज्य में करीब 92 मदरसों में छात्रवृत्ति घोटाले के आरोप सामने आए हैं। कई मदरसों पर फर्जी दस्तावेज़ों और कालाधन के जरिए सरकारी धन के दुरुपयोग के गंभीर आरोप लगे हैं। इसी को देखते हुए मुख्यमंत्री धामी ने विशेष जांच टीम का गठन किया है, जो इस पूरे घोटाले की तहकीकात कर रही है। माना जा रहा है कि मदरसा बोर्ड को भंग करने के पीछे यह घोटाला भी एक बड़ा कारण बना। इसके अलावा, सरकार ने इस कदम को कानूनी रूप देने के लिए अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक-2025 को पारित कर राज्यपाल की स्वीकृति भी हासिल कर ली है। इस विधेयक के तहत नई व्यवस्था 1 जुलाई 2026 से लागू होगी। इसके बाद राज्य में मदरसों की मान्यता और संचालन का अधिकार सीधे एक नए अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण के पास होगा, जो शिक्षा विभाग के अंतर्गत कार्य करेगा। अब मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ विज्ञान, गणित, हिंदी और अंग्रेजी जैसे विषयों को भी प्राथमिकता दी जाएगी, ताकि विद्यार्थी आधुनिक शिक्षा से भी जुड़ सकें। हालांकि, इस फैसले ने राज्य की राजनीति और समाज में नई बहस छेड़ दी है। कुछ संगठनों ने इसे “शिक्षा सुधार की दिशा में ऐतिहासिक कदम” बताया है, वहीं कुछ धार्मिक संगठनों और विपक्षी दलों ने इसे “धार्मिक शिक्षा प्रणाली पर हमला” करार दिया है। उनका कहना है कि इस कदम से मदरसों की परंपरागत पहचान प्रभावित हो सकती है। सरकार का जवाब है कि यह कदम किसी समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि हर बच्चे को समान शिक्षा अवसर देने की दिशा में उठाया गया सुधारात्मक निर्णय है। इन तमाम घटनाक्रमों के बीच यह स्पष्ट है कि मदरसा बोर्ड का अंत केवल एक औपचारिक बदलाव नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था में एक नई शुरुआत का संकेत है । जहां धार्मिक और आधुनिक शिक्षा के बीच की दूरी को पाटने की कोशिश की जा रही है। सरकार का यह कदम राज्य की शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता, समानता और जवाबदेही की नई नींव रख सकता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पहले कहा था कि मदरसा शिक्षा प्रणाली वर्षों से गंभीर समस्याओं का सामना कर रही थी, जिनमें केंद्रीय छात्रवृत्ति वितरण में अनियमितताएं, मध्याह्न भोजन योजना में गड़बड़ी और प्रबंधन में पारदर्शिता की कमी शामिल थी। उन्होंने कहा कि यह विधेयक सरकार को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के संचालन की प्रभावी ढंग से निगरानी करने और जरूरी निर्देश जारी करने के लिए सशक्त बनाएगा, जिससे राज्य में शैक्षिक उत्कृष्टता और सामाजिक सद्भाव को और मजबूती मिलेगी।

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