Thursday, November 6, 2025
Homeविशेष स्टोरीबांग्लादेश के लोकतंत्र में कट्टरपंथियों का काला अध्याय

5 अगस्त को कट्टरपंथियों ने एक बार फिर पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट कर दिया। आरक्षण की मांग पर शुरू हुआ आंदोलन धीरे-धीरे कट्टरपंथियों के हाथ में आ गया। पल भर में कट्टरपंथियों ने बांग्लादेश में सब कुछ बदल डाला। लाखों की भीड़ शेख हसीना के घर में घुस गई और उनका कीमती सामान लूटा और सियासत भी खत्म कर दी। पीएम शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया। एक बार पिफर बांग्लादेश कट्टरपंथियों के हाथों में आ गया है। शेख हसीना भागकर भारत पहुंचीं। इसके बाद दंगाइयों ने हिंदुओं के घरों और मंदिरों में घुसकर खूब लूटपाट मचाई। हिंसक प्रदर्शन के दौरान जो कुछ हुआ उस उत्पात ने न तो मंदिर देखा, न मस्जिद न मुसलमान देखा, न हिंदू। बांग्लादेश में हिंसा के बीच कई ऐसी तस्वीरें आई जो भारत को झकझोर गई।

कट्टरपंथ क्या कर सकता है, किस हद तक जा सकता है, इसका अंदाजा न तो आज तक कोई लगा पाया है और न आगे कोई लगा पाएगा। 5 अगस्त को कट्टरपंथियों ने एक बार फिर पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट कर दिया। बांग्लादेश में आरक्षण की मांग पर शुरू हुआ आंदोलन धीरे-धीरे कट्टरपंथियों के हाथ में आ गया। पल भर में कट्टरपंथियों ने बांग्लादेश में सब कुछ बदल डाला। लाखों की भीड़ शेख हसीना के घर में घुस गई और उनका बेस कीमती सामान लूटा और सियासत भी खत्म कर दी। पीएम शेख हसीना ने इस्ती फा दे दिया। एक बार िफर बांग्लादेश कट्टरपंथियों के हाथों में आ गया है। भारत सरकार कह रही है कि बांग्लादेश में हिंदू सुरक्षित हैं लेकिन जो खबरें आईं, वह बहुत डरावनी थी, भयावह भी। हिंसक प्रदर्शन के दौरान जो कुछ हुआ उस उत्पात ने न तो मंदिर देखा, न मस्जिद न मुसलमान देखा, न हिंदू। बांग्लादेश में जारी हिंसक प्रदर्शन, अराजकता और उपद्रव के बीच नोबेल फरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस ने गुरुवार को अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ ली। 84 साल के यूनुस को राष्ट्रपति मुहम्मद शहाबुद्दीन ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। लेकिन अभी भी पड़ोसी मुल्क में हालात काबू में नहीं है। हालांकि इसकी पहले से ही आशंका थी कि बांग्लादेश में कुछ बड़ा होने वाला है। राजधानी सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान भी कट्टरपंथियों के आगे असहाय नजर आए। करीब 4 लाख लोग सड़कों पर थे। जिसके बाद बांग्लादेश में हिंसा, तोड़पफोड़ और कत्लेआम शुरू हो गया। भीड़ के आगे सेना भी विवश हो गई। बांग्लादेश में महाबवाल के बाद भारत में बाॅर्डर सिक्योरिटरी पफोर्स ने पश्चिम बंगाल, मेघालय, त्रिपुरा, असम और मिजोरम से लगी भारत-बांग्लादेश सीमा पर अलर्ट बढा दिया है।

सत्ता गई और जान पर भी बन आई तब भारत ने शेख हसीना का दिया साथ

बांग्लादेश की सत्ता में लगातार 15 साल से काबिज प्रधानमंत्राी शेख हसीना ने कभी सोचा भी नहीं उन्हें अपने देश से जान बचाकर भागना पड़ेगा। हाल के समय में बांग्लादेश में शेख हसीना का सियासी ग्राफ ढलान पर आ रहा था लेकिन भारत समेत कई देशों में उनकी लोकप्रियता बढती चली गई। शेख हसीना बांग्लादेश में अब तक पांच बार प्रधानमंत्राी रहीं हैं। सबसे पहले हुए साल 1996 में पीएम बनी थीं। साल 2009 से 5 अगस्त 2024 तक लगातार चार बार पीएम बनने का भी उनका रिकाॅर्ड है। करीब दो महीने पहले 9 जून को राजधानी दिल्ली में नरेंद्र मोदी तीसरे कार्यकाल में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान शेख हसीना जब विशेष मेहमान के रूप में शामिल हुई थीं तब भारत सरकार ने रेड कारपेट बिछाकर उनका स्वागत किया था। प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी और हसीना की दोस्ती खूब परवान चढी । दोनों नेताओं ने एक दूसरे के देशों में कई यात्राएं की। इस दौरान भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापारिक के साथ कई अहम समझौते भी किए गए। बांग्लादेश में जब सरकार का तख्ता पलट हुआ तब हसीना ने भारत को याद किया। शेख हसीना प्रधानमंत्राी का इस्तीपफा देकर और जान बचाकर ढाका से सीधे गाजियाबाद के हिंडन एयरपोर्ट पर पहुंचीं। यहां पर प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी के निर्देश पर भारत के मुख्य राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल शेख हसीना से मिलने पहुंचे। पिफलहाल वह भारत में है। बांग्लादेश के हालात पर पूरी दुनिया की नजर है। वहीं दूसरी ओर शेख हसीना को शरण देने के बाद भारत-बांग्लादेश के कट्टरपंथियों के निशाने पर है। वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश में हालात सामान्य नहीं हैं। बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर शुरू हुआ संग्राम शेख हसीना के इस्तीपफे तक जा पहुंचा। छात्रों के प्रदर्शन के बाद आमट्ट ने तख्ता पलटकर सत्ता अपने हाथ में ले ली है।

हसीना की बर्बादी के पीछे आरक्षण के साथ बांग्लादेश की इन दो हस्तियों का भी बड़ा हाथः

बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबर रहमान की 76 वर्षीय बेटी हसीना 2009 से सामरिक रूप से महत्वपूणर्् ा इस दक्षिण एशियाई देश की बागडोर संभाल रही थीं। उन्हें जनवरी में हुए 12वें आम चुनाव में लगातार चैथी बार और कुल पांचवीं बार प्रधानमंत्राी चुना गया था। पूर्व प्रधानमंत्राी खालिदा जिया की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगियों ने चुनाव का बहिष्कार किया था। बांग्लादेश में आरक्षण विरोध हिंसा में 400 से ज्यादा लोगों जान चली गई। विरोध प्रदर्शन शुरू में बांग्लादेश के स्वतंत्राता सेनानियों के परिवारों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर शुरू हुआ था। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह शेख हसीना की अवामी लीग के सदस्यों के पक्ष में है और इसकी जगह योग्यता आधारित प्रणाली की मांग की। जैसे ही सरकार ने कार्रवाई की। यह मामला बढ गया और प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्राी के इस्तीपफे की मांग करनी शुरू कर दी। यह प्रदर्शन बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के सेनानियों को मिल रहे 30 पफीसदी आरक्षण के खिलापफ हो रहा है। हालांकि, इस बवाल के पीछे बांग्लादेश के मानवाधिकार समर्थक नेता मोहम्मद यूनुस को जेल भेजना और पूर्व चीपफ जस्टिस एसके सिन्हा को देश निकाला करना भी बताया जा रहा है। हसीना की इस बर्बादी के पीछे छात्रों का सिपर्फ आरक्षण विरोधी प्रदर्शन ही नहीं है, बल्कि हसीना ने देश की दो बड़ी महत्वपूर्ण हस्तियों के साथ की गई नाइंसापफी भी थी, जिनकी वहां के आम लोगों में अच्छी-खासी प्रतिष्ठा थी। ये हैं नोबेल पुरस्कार विजेता और ग्रामीण बैंक के सूत्राधार मोहम्मद यूनुस और बांग्लादेश के पूर्व चीपफ जस्टिस सुरेंद्र कुमार सिन्हा। इन दोनों को वहां की जनता अपने सिर आंखों पर बिठाती रही है। इन दोंनों के खिलापफ की गई बदले की कार्रवाई ने वहां की जनता के मन में हसीना सरकार के प्रति गुस्सा भर दिया। इस गुस्से को बस एक चिंगारी मिलनी थी, जो आरक्षण विरोधी आग के रूप में मिल गई और हसीना की सत्ता खाक में मिल गई। माना जा रह है कि यूसुपफ को केयरटेकर पीएम बनाया जा सकता है। 28 जून, 1940 को जन्मे मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश के एक सामाजिक उद्यमी, एक बैंकर, एक अर्थशास्त्राी और सिविल सोसायटी के नेता हैं। यूनुस ने 2006 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की और माइक्रोक्रेडिट और माइक्रापेफाइनेंस जैसे नए-नए आइडिया दिया। इसी बात के लिए उन्हें 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। नोबेल कमेटी ने यूनुस और ग्रामीण बैंक को एक साथ माइक्रो क्रेडिट के माध्यम से नीचे से आर्थिक और सामाजिक विकास करने के उनके प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा। 2009 में उन्हें यूनाइटेड स्टेट्स प्रेसिडेंशियल मेडल आॅपफ प्रफीडम से सम्मानित किया गया था। 2010 में उन्हें कांग्रेसनल गोल्ड मेडल दिया गया। इसके साथ ही उन्हें कई और भी अवाॅर्ड मिल चुके हैं। हसीना के कार्यकाल में ही मोहम्मद यूनुस पर 20 लाख अमेरिकी डाॅलर गबन करने का आरोप लगाए गए थे। इस मामले और श्रम कानूनों को न मानने के आरोप में यूनुस को 6 महीने की जेल की सजा भी सुनाई गई थी। हालांकि, युनूस अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को सिरे से नकारते रहे हैं। वह जमानत पर जेल से बाहर भी आ गए। यूनुस को साल 2006 में पूरे बांग्लादेश में ग्रामीण बैंकों की चेन शुरू करने की वजह से नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सरकार ने यूनुस और अन्य लोगों पर ग्रामीण टेलीकाॅम के श्रमिक कल्याण कोष से करीब 20 लाख अमेरिकी डाॅलर का गबन करने का आरोप लगाया है। बताया गया कि ग्रामीण टेलीकाॅम के पास बांग्लादेश के सबसे बड़े मोबाइल पफोन आॅपरेटर ग्रामीणपफोन में 34.2 पफीसदी हिस्सेदारी है। ग्रामीण पफोन नाॅर्वे की टेलीकाॅम दिग्गज टेलीनाॅर की सहायक कंपनी है। मोहम्मद यूनुस पर हसीना सरकार ने 200 से ज्यादा मामले दर्ज करवाए हैं, जिनमें भ्रष्टाचार के बड़े आरोप भी शामिल हैं। इन मामलों में दोषी पाए जाने पर उन्हें वर्षों तक की जेल की सलाखों में रहन पड़ सकता है। इसे लेकर भी जनता के बीच कापफी नाराजगी थी। यूनुस को श्रम कानूनों के उल्लंघन के आरोप में 6 महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उन्हें जमानत दे दी गई थी। वहीं बांग्लादेश में शासन की न्यायपालिका पर कड़ी पकड़ है। बांग्लादेश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एसके सिन्हा को कुछ सरकार विरोधी पफैसलों के लिए देश से बाहर कर दिया गया था। 2021 में बांग्लादेश की एक अदालत ने अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से आने वाले देश के पहले मुख्य न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार सिन्हा को भ्रष्टाचार के दो मामलों में 11 साल की जेल की सजा सुनाई। अमेरिका में रहने वाले सिन्हा पर मनी लाॅन्ड्रिंग के लिए सात साल और आपराधिक विश्वासघात के लिए चार साल की सजा सुनाई गई थी।

पाकिस्तान-म्यांमार की तरह बांग्लादेश में भी सेना का दामन कभी सापफ नहीं रहा

5 अगस्त को हुए शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद एक बार पिफर बांग्लादेश में सेना की भूमिका को भी संदेश के रूप में देखा जा रहा है। उसके बड़ी वजह यह है कि किसी भी देश में सेना के पास सबसे ज्यादा ताकत होती है। भारत के पड़ोसी पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार में लोकतंत्रा की चुनी हुई सरकारों के प्रति सेना का कभी भी दामन सापफ नहीं रहा। इन तीनों देशों में सेना ने लोकतंत्रा की कई बार हत्या की। इस बार भी बांग्लादेश में शीर्ष सेना अधिकारी समय रहते हिंसा पर काबू नहीं पा सके। प्रदर्शनकारियों के आगे बांग्लादेश में सेना मूकदर्शक बनी रही। सोमवार दोपहर करीब 2 बजे हजारों की संख्या में गुस्साए कट्टरपंथियों और प्रदर्शनकारियों ने जब में पीएम हाउस पर कब्जा कर लिया तब शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा। हालांकि उस दौरान बांग्लादेश आर्मी प्रमुख ने शेख हसीना के भागने में मदद भी की। उसके कुछ देर बाद ही आर्मी चीपफ जनरल वकार-उज-जमान ने बताया कि ‘हसीना ने इस्तीपफा दे दिया है। अब देश हम संभालेंगे।’ मौजूदा सेना प्रमुख की नियुक्ति शेख हसीना ने की। करीब 50 साल पहले 1975 में बांग्लादेश में सैन्य तख्ता पलट होने के बाद भी ये दोनों बहनें भारत आईं थी। तब शेख हसीना ने दिल्ली में 6 साल तक पनाह ली थी। उस समय केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी। इंदिरा गांधी ने ही शेख हसीना का दिल्ली में रहने का पूरा इंतजाम किया था। बता दें कि जनवरी 2024 के बाद इस तख्तापलट की कहानी लिखनी शुरू हो गई थी। इस दौरान जमात-ए-इस्लामी और बांग्लादेश सेना के कई बड़े अधिकारियों की आपस में बैठकें भी हुईं, जिसका पता शेख हसीना की खुपिफया विंग नहीं लगा पाई। इसी साजिश के तहत बाहरी देशों ने अपने एजेंडे के तहत सेना और जमात-ए-इस्लामी के जरिए अपना निशाना साधा। छात्रों ने रिजर्वेशन के नाम पर जो दंगा पफसाद शुरू किया था, संभवत उन्हें भी यह नहीं पता रहा होगा कि इसका अंत शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट से होगा। इस आंदोलन में धीरे-धीरे आतंकवादी संगठन शामिल होते चले गए और आंदोलन की कमान इन आतंकवादी संगठनों ने ही संभाल ली जिन्हें बाहरी देशों से लगातार पैसा मिल रहा था। सेना ने शेख हसीना को यह कहकर समझाया कि हम अपने ही लोगों पर गोली नहीं चलाएंगे और इस गोलीबारी से शेख हसीना की सरकार पलट सकती है क्योंकि गोलीबारी में सैकड़ों लोग मारे जाएंगे। संभवत शेख हसीना को भी यह विश्वास नहीं रहा होगा की पफौज के जिन अपफसरों की बात पर वह विश्वास करती चली आ रही हैं, वह उन्हें भी धोखा देंगे। उल्लेखनीय है कि 1971 में पाकिस्तान विभाजन के बाद बांग्लादेश बना। आजादी की लड़ाई लड़ने वाली मुक्ति बाहिनी ही बांग्लादेश आर्मी बनी। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देखें, तो बांग्लादेश बनने के बाद से अगले 15 सालों तक सेना का देश की राजनीति में हस्तक्षेप रहा। सेना ने 3 बार तख्तापलट किया। बांग्लादेश में आगे क्या होगा, इसमें सेना की भूमिका सबसे बड़ी है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments