उत्तराखंड की धामी सरकार ने राज्य के सरकारी स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का दैनिक पाठ अनिवार्य कर दिया है। यह सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ का पाठ नहीं, बल्कि बच्चों के मन, मस्तिष्क और आत्मा को छूने वाली एक सांस्कृतिक यात्रा की शुरुआत है । जहां हर सुबह प्रार्थना सभा गीता के ज्ञान से गूंजेगी और छात्रों को जीवन, मूल्य और आत्मनियंत्रण का बोध कराया जाएगा। उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती द्वारा मुख्य शिक्षा अधिकारियों को इस संबंध में आदेश जारी किया है। आदेश के बाद नियम प्रदेश भर के लगभग 17 हजार सरकारी स्कूलों पर लागू हो गया । शिक्षा निदेशक डॉ सती ने बताया कि हर दिन स्कूल में गीता के श्लोकों का केवल उच्चारण नहीं होगा, बल्कि उनका अर्थ भी समझाया जाएगा। दिव्य हिमगिरि रिपोर्ट।

भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सदियों पुरानी जड़ों को फिर से सींचने की एक भावपूर्ण पहल करते हुए 15 जुलाई को उत्तराखंड की धामी सरकार ने राज्य के सरकारी स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का दैनिक पाठ अनिवार्य कर दिया है। यह सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ का पाठ नहीं, बल्कि बच्चों के मन, मस्तिष्क और आत्मा को छूने वाली एक सांस्कृतिक यात्रा की शुरुआत है । जहां हर सुबह प्रार्थना सभा गीता के ज्ञान से गूंजेगी और छात्रों को जीवन, मूल्य और आत्मनियंत्रण का बोध कराया जाएगा। इस फैसले के पीछे केवल परंपरा नहीं, बल्कि वह दृष्टिकोण है जो गीता को मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र और नैतिक दर्शन का जीता-जागता उदाहरण मानता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों से मेल खाती यह पहल बच्चों को आधुनिक ज्ञान के साथ-साथ भारतीय आत्मा की गहराई से भी जोड़ने की कोशिश है। उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती द्वारा मुख्य शिक्षा अधिकारियों को इस संबंध में आदेश जारी किया है। आदेश के बाद मंगलवार से ही नियम प्रदेश भर के लगभग 17 हजार सरकारी स्कूलों पर लागू हो गया है। शिक्षा निदेशक डॉ सती ने बताया कि हर दिन स्कूल में गीता के श्लोकों का केवल उच्चारण नहीं होगा, बल्कि उनका अर्थ भी समझाया जाएगा। इसका मकसद स्कूली बच्चों को प्राचीन भारतीय परंपराओं से अवगत कराना है। इससे बच्चों का पर्सनैलिटी डेवलेपमेंट होने के साथ बौद्धिक क्षमता भी बढ़ेगी। जारी आदेश में लिखा गया है कि हर दिन एक मूल्य आधारित श्लोक प्रार्थना सभा में बोला जाएगा और सूचना पट पर अर्थ सहित लिखा भी जाएगा। टीचर्स भी समय-समय पर श्लोकों की व्याख्या करते हुए बच्चों को सैद्धांतिक जानकारी देंगे। छात्रों को यह भी बताया जाएगा कि गीता के उपदेश मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, व्यवहार विज्ञान और नैतिक दर्शन पर आधारित हैं, जो धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से संपूर्ण मानवता के लिए उपयोगी हैं। आदेश में कहा गया है कि स्कूली स्तर पर यह सुनिश्चित किया जाए कि छात्रों को ये श्लोक सिर्फ विषय या रीडिंग मैटेरियल के रूप में नहीं पढ़ाए जाएं बल्कि ये उनके जीवन और व्यवहार में भी वो बातें दिखनी चाहिए। सरकार की इस पहल का उद्देश्य बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ भारतीय पारंपरिक ज्ञान प्रणाली से भी जोड़ना है।सरकारी स्कूलों में गीता का श्लोक पढ़वाने का फैसला सिर्फ एक धार्मिक पहल नहीं, बल्कि छात्रों के भीतर सोचने-समझने की क्षमता को जगाने की कोशिश है। शिक्षा निदेशालय ने स्पष्ट किया है कि हर दिन सिर्फ श्लोक का उच्चारण नहीं होगा, बल्कि उसका अर्थ भी बताया जाएगा, ताकि बच्चों को आत्ममंथन, निर्णय क्षमता और व्यवहारिक जीवन के सिद्धांत समझ में आएं। टीचर्स की भूमिका भी सिर्फ पाठ पढ़ाने तक सीमित नहीं रहेगी। वे प्रश्नों के जरिए बच्चों की सोच को दिशा देने और नैतिकता के पहलुओं को स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे। राज्य सरकार का मानना है कि इससे गीता छात्रों के लिए किताब नहीं, बल्कि व्यवहार में उतरने वाला ज्ञान बन सकेगी और यही है इस फैसले की असली क्रांतिकारी सोच है ।

श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक से विद्यार्थियों के चरित्र, निर्माण और नैतिक मूल्यों को मजबूती मिलेगी

माना जा रहा है कि इससे छात्रों के चरित्र निर्माण, नैतिक मूल्यों, आत्मनियंत्रण, निर्णय क्षमता और वैज्ञानिक सोच को मजबूती मिलेगी। धामी सरकार के इस निर्णय का समर्थन मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शामून कासमी ने भी किया है। उन्होंने कहा, राम और कृष्ण हमारे पूर्वज हैं, और हर भारतीय को उनके बारे में जानना चाहिए। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि मदरसों में संस्कृत पढ़ाने के लिए संस्कृत विभाग के साथ एमओयू की योजना बनाई जा रही है। सरकार ने साफ किया है कि गीता को केवल धार्मिक ग्रंथ मानकर न पढ़ाया जाए, बल्कि उसे मनोविज्ञान, व्यवहार विज्ञान और नैतिक दर्शन की दृष्टि से देखा जाए। यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उन उद्देश्यों से मेल खाती है, जिनमें पारंपरिक भारतीय ज्ञान को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में शामिल करने पर जोर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड की धामी सरकार ने 2 महीने पहले 20 मई को एक महत्वपूर्ण फैसला लिया। सात मई को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर ऑपरेशन सिंदूर करके कई आतंकी अड्डों को तहस-नहस कर दिया था। उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश के मदरसों में पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों को ऑपरेशन सिंदूर के बारे में पढ़ाने का आदेश जारी किया था । मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड सरकार ने राज्य में मदरसा पाठ्यक्रम में ऑपरेशन सिंदूर पर एक पूरा अध्याय शुरू करने का निर्णय लिया । जिसमें भारतीय सेना की वीरता और देश के प्रति समर्पण की प्रेरणादायक कहानी शामिल होंगी। पूरे उत्तराखंड में 451 पंजीकृत मदरसों में 50,000 से अधिक छात्र नामांकित हैं, जो अब ऑपरेशन सिंदूर के बारे में अध्ययन करेंगे।उत्तराखंड मदरसा बोर्ड ने कहा कि उत्तराखंड के मदरसों के पाठयक्रम में, हाल में भारतीय सैन्य बलों द्वारा पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की गाथा को शामिल किया जाएगा। बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी ने यहां जारी एक बयान में कहा, ‘‘हम मदरसों में सफल ऑपरेशन सिंदूर की गाथा को शामिल करेंगे ताकि हमारे मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को यह मालूम हो सके कि यह ऑपरेशन क्या था और इसकी जरूरत क्यों पड़ी।’’ पाकिस्तान को ‘नापाक मुल्क’ बताते हुए कासमी ने कहा कि जिस तरह से उसने हमारे देश पर हमला किया और पहलगाम में ‘हमारे निहत्थे भाइयों’ का कत्ल किया, उसके लिए उसे सबक सिखाना बहुत जरूरी था। उन्होंने इस कृत्य को कुरान की भी अवहेलना बताया। मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा कि मदरसों में ऑपरेशन सिंदूर को पाठयक्रम में शामिल करने के निर्णय पर अमल के लिए जल्दी ही पाठयक्रम समिति की बैठक बुलायी जाएगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मार्गदर्शन में उत्तराखंड में लगातार मदरसों को मुख्य धारा से जोड़ने का काम किया जा रहा है।

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