आपदा से जूझता उत्तराखंड, प्रकृति दिखा रही विकराल तस्वीर

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उत्तराखंड इस साल कुछ ज्यादा ही आपदा के गहरे जख्म झेल रहा है। धराली और थराली में बादल फटने के बाद चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी और बागेश्वर में कुदरत का कहर बरपा, जिसने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया। पांच लोगों की मौत और 11 लोगों के लापता होने की खबर से देवभूमि में मातम का माहौल है, वहीं करोड़ों की संपत्ति भी इस आपदा की भेंट चढ़ गई। लगातार घट रही घटनाओं ने प्रदेश की विकास यात्रा पर ब्रेक लगा दिया है। जब-जब राज्य आगे बढ़ने की कोशिश करता है, तब-तब प्रकृति का प्रहार उसके कदम रोक देता है। चार धाम यात्रा, जो उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था और पहचान का बड़ा स्तंभ है, उस पर भी इन आपदाओं का असर साफ झलक रहा है। लेकिन इन हालातों के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मजबूती से डटे हुए हैं। एक ओर राहत और बचाव के मोर्चे पर सक्रिय हैं, तो दूसरी ओर राज्य को विकास की राह पर बनाए रखने का संकल्प भी दोहराते हैं। आपदा और विकास, दोनों मोर्चों पर जूझता उत्तराखंड आज धामी की नेतृत्व क्षमता और हिम्मत की असली परीक्षा देख रहा है। शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

उत्तराखंड लगातार कुदरत के कहर से जूझ रहा है। धराली और थराली में बादल फटने की घटनाओं में मौत और तबाही हुई, लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी और बागेश्वर जिलों में भी बादल फटे और फिर से भारी तबाही देखने को मिली। इन हादसों में अब तक कुल 5 लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग अब भी लापता हैं। कई गांव मलबे में दब गए, सड़कें बह गईं, पुल टूट गए और करोड़ों की संपत्ति बर्बाद हो गई। पहाड़ों में रह रहे परिवारों के लिए यह घटनाएं दहशत और असुरक्षा का नया दौर लेकर आई हैं। देवभूमि की यह पीड़ा केवल जानमाल तक सीमित नहीं है। हर बार जब राज्य विकास की रफ्तार पकड़ने लगता है, तब-तब आपदा उसके कदम रोक देती है। हालिया घटनाओं ने चार धाम यात्रा पर भी गहरा असर डाला है। करोड़ों श्रद्धालु हर साल उत्तराखंड का रुख करते हैं और यह यात्रा प्रदेश की अर्थव्यवस्था और पहचान का बड़ा आधार है। लेकिन बादल फटने और आपदा की घटनाओं ने इस यात्रा की रौनक को फीका कर दिया है, जिससे सरकार की आमदनी और स्थानीय व्यापारियों का भविष्य दोनों प्रभावित हुए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हालात पर तुरंत उच्च स्तरीय बैठक की और अधिकारियों को राहत-बचाव कार्य तेज करने के निर्देश दिए। उन्होंने संवेदनशील इलाकों से लोगों को सुरक्षित निकालने, फंसे यात्रियों को राहत पहुंचाने और नुकसान का आकलन जल्द से जल्द करने का आदेश दिया। धामी ने साफ कहा कि आपदा कितनी भी बड़ी क्यों न हो, सरकार जनता को अकेला नहीं छोड़ेगी और राज्य को विकास की राह पर आगे ले जाने का संकल्प बरकरार रहेगा। राज्य सरकार के प्रारंभिक आकलन के मुताबिक अब तक करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ है। जिन परिवारों के आशियाने मलबे में दब गए, उनके सामने पुनर्वास की चुनौती सबसे बड़ी है। आपदा की मार झेल रहे इन पहाड़ी गांवों में आज भी भय और अनिश्चितता का माहौल है। उत्तराखंड के सामने फिलहाल दोहरी लड़ाई है। एक ओर आपदा की चोट को सहकर प्रभावितों को राहत और पुनर्वास देना, और दूसरी ओर विकास की गति बनाए रखना। इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री धामी का यह संदेश साफ है कि चुनौतियां कितनी भी बड़ी क्यों न हों, देवभूमि को न केवल आपदा से उबारना है बल्कि उसे विकास की नई ऊंचाइयों तक भी पहुंचाना है। उल्लेखनीय है कि अगस्त के अंत तक उत्तराखंड में असामान्य बारिश का सिलसिला देखने को मिला है। हाल ही में 24 घंटे में राज्यभर में औसतन 369% अधिक बारिश दर्ज की गई। सामान्य 9.1 मिमी की तुलना में यह आंकड़ा 46.6 मिमी तक पहुंच गया। बागेश्वर में यह वृद्धि करीब 2000% और चमोली में 1290% दर्ज की गई, जबकि देहरादून और हरिद्वार समेत कई जिलों में भी 400 से 500% तक ज्यादा बारिश हुई। इसी अवधि में राज्य में कई जगहों पर 7 से 11 सेमी तक बारिश दर्ज हुई, जिसे मौसम विभाग ने भारी से बहुत भारी बारिश की श्रेणी में रखा है। यह मानसून सीजन उत्तराखंड के लिए आपदा और चुनौती दोनों बनकर सामने आया है, क्योंकि लगातार बारिश और बादल फटने की घटनाओं से अब तक कई जनहानि और करोड़ों का नुकसान हो चुका है।

देवभूमि में आपदाएं राज्य की अर्थव्यवस्था और विकास की रफ्तार पर लगाती हैं ब्रेक

देवभूमि उत्तराखंड में यह आपदाएं केवल जानमाल की हानि तक सीमित नहीं हैं, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था और विकास की रफ्तार को भी बार-बार रोक देती हैं। जब-जब सरकार विकास की ओर बढ़ती है, तब-तब आपदाएं उसकी राह में पहाड़ बनकर खड़ी हो जाती हैं। चार धाम यात्रा जैसी महत्वपूर्ण धार्मिक और आर्थिक धुरी भी इसका शिकार हो गई है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और इससे प्रदेश को भारी राजस्व मिलता है, लेकिन लगातार हो रही प्राकृतिक आपदाओं ने इस यात्रा की रौनक फीकी कर दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हालात पर तुरंत उच्च स्तरीय बैठक की और अधिकारियों को राहत-बचाव कार्य युद्धस्तर पर चलाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि प्रभावित इलाकों से लोगों को सुरक्षित निकालना, फंसे यात्रियों तक भोजन, पानी और दवाइयां पहुंचाना और नुकसान का आकलन तेजी से करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। धामी ने यह भी स्पष्ट किया कि आपदा कितनी भी बड़ी क्यों न हो, राज्य को विकास की राह पर आगे बढ़ने से रोका नहीं जा सकता।
फिलहाल प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती टूट चुकी सड़कों और पुलों को फिर से चालू करना है। कई गांव जिला मुख्यालयों से कटे हुए हैं और वहां राहत दल पहुंचने में घंटों नहीं बल्कि दिनों का वक्त ले रहे हैं। इसी बीच स्थानीय लोग अपने स्तर पर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। फंसे हुए यात्रियों को भोजन और दवाइयां नहीं मिल पा रहीं, कई जगह गंभीर रूप से घायल लोग समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पा रहे। खराब मौसम के कारण हेलीकॉप्टर से एयरलिफ्ट करने में भी दिक्कतें आ रही हैं।
बादल फटने की घटनाओं ने गांवों को भी उजाड़ दिया है। मिट्टी और पत्थर से बने घर मलबे में बदल गए हैं और परिवार खुले आसमान के नीचे या रिश्तेदारों के घरों में शरण लेने को मजबूर हैं। इस बीच राज्य सरकार ने एसडीआरएफ और एनडीआरफ और की टीमें प्रभावित इलाकों में भेज दी हैं और जिला प्रशासन को निर्देश दिया गया है कि राहत शिविर बनाकर पीड़ितों को तुरंत भोजन और सुरक्षित आश्रय मुहैया कराया जाए।राज्य सरकार के प्रारंभिक आकलन के अनुसार करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ है। मुख्यमंत्री धामी ने कहा है कि प्रभावितों के पुनर्वास और मुआवजे के लिए विशेष राहत पैकेज तैयार किया जा रहा है और किसी भी पीड़ित परिवार को सरकार अकेला नहीं छोड़ेगी। उत्तराखंड फिलहाल दोहरी चुनौती से जूझ रहा है।

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