अलास्का में सजी कूटनीति की भव्य “महफिल”

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारतीय समय अनुसार शुक्रवार आधी रात हुई बहुप्रतीक्षित मुलाकात अमेरिका के अलास्का में हुई। इस मुलाकात पर पूरी दुनिया की नज़रें टिकी थीं क्योंकि माना जा रहा था कि दोनों नेता यूक्रेन संकट, सुरक्षा मुद्दों, और ऊर्जा नीति पर कोई ठोस सहमति बना सकते हैं। मुलाकात की शुरुआत बेहद गर्मजोशी के माहौल में हुई। रेड कार्पेट पर ट्रंप और पुतिन ने मुस्कुराते हुए हाथ मिलाया और कैमरों के सामने दोस्ताना अंदाज पेश किया। लेकिन कई घंटों की बातचीत के बावजूद दोनों नेता किसी निर्णायक नतीजे पर नहीं पहुंच सके। यूक्रेन युद्ध, नाटो की भूमिका, और वैश्विक स्थिरता जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा तो हुई, लेकिन कोई साझा घोषणा नहीं की गई। अमेरिकी मीडिया ने इसे “डिप्लोमैटिक फोटो-ऑप” करार दिया, जबकि रूसी विशेषज्ञों का कहना है कि मुलाकात भले ही बेनतीजा रही हो, लेकिन भविष्य में संवाद का रास्ता खोल सकती है। हालांकि राजनीतिक निष्कर्ष न निकलने के बावजूद इस बैठक ने अलास्का को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया। शंभू नाथ गौतम की रिपोर्ट।

15 अगस्त को जब भारत अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था उसी दिन अमेरिका के सबसे बड़े राज्य अलास्का में कूटनीति को लेकर दुनिया की सबसे भव्य महफिल सजी। अलास्का के सबसे बड़े एंकरेज शहर में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात पर विश्व भर की निगाहें लगी हुई थी। हालांकि दोनों नेताओं की बातचीत बेनतीजा रही। अमेरिका के अलास्का में हुई बहुप्रतीक्षित मुलाकात के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का स्वागत कुछ अलग अंदाज में किया। ट्रंप ने मुस्कुराते हुए पुतिन से हाथ मिलाते हुए कहा— नमस्ते पड़ोसी । ट्रंप का यह संबोधन सुनकर प्रेस हॉल तालियों से गूंज उठा और पुतिन ने भी हल्की मुस्कान के साथ इसका जवाब दिया। दोनों नेताओं ने मुलाकात के बाद संयुक्त रूप से लगभग 12 मिनट की प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान ट्रंप और पुतिन ने वैश्विक चुनौतियों, ऊर्जा सुरक्षा और यूक्रेन संकट जैसे मुद्दों पर बात की। हालाँकि किसी ठोस समझौते की घोषणा नहीं हुई, लेकिन दोनों नेताओं ने यह संकेत दिया कि संवाद की प्रक्रिया जारी रहेगी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा कि “हमारी भौगोलिक नज़दीकी हमें संवाद का बेहतर अवसर देती है,” वहीं पुतिन ने भी बातचीत को “सकारात्मक शुरुआत” बताया।
मुलाकात से बड़े राजनीतिक नतीजे भले ही न निकले हों, लेकिन ट्रंप के “नमस्ते पड़ोसी” वाले संबोधन ने माहौल को हल्का-फुल्का और दोस्ताना ज़रूर बना दिया। अलास्का इस कूटनीतिक क्षण का गवाह बनकर एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में छा गया। अमेरिका के अलास्का में सजी कूटनीति की भव्य महफिल ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जब रेड कार्पेट पर कदम रखते हुए गर्मजोशी से एक-दूसरे से मिले, तो माहौल उम्मीदों से भरा हुआ था। दोनों नेताओं ने हाथ मिलाए, मुस्कानें बांटीं और बातचीत की मेज़ पर बैठकर तमाम अहम वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। हालांकि इस मुलाकात से कोई ठोस निष्कर्ष या समाधान नहीं निकल पाया। यूक्रेन संकट, वैश्विक सुरक्षा, और ऊर्जा नीति जैसे मुद्दों पर लंबी बातचीत के बावजूद, दोनों राष्ट्राध्यक्ष किसी साझा फैसले पर नहीं पहुंच सके। लेकिन इसके बावजूद इस बैठक ने अलास्का को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में ला खड़ा किया। दुनिया भर के मीडिया चैनल्स और राजनीतिक विश्लेषकों की निगाहें इस मुलाकात पर टिकी थीं। नतीजे चाहे न आए हों, मगर जिस अलास्का को अक्सर बर्फीली वादियों और प्राकृतिक संसाधनों के लिए जाना जाता था, वह अब कूटनीतिक मंच के रूप में पहचाना जाने लगा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही ट्रंप-पुतिन मुलाकात राजनीतिक स्तर पर “खाली हाथ” रही हो, लेकिन अलास्का की कूटनीतिक पहचान मज़बूत हुई है। दुनिया भर के लोग अब न सिर्फ इस मुलाकात को याद रखेंगे बल्कि उस जगह को भी, जहां दो महाशक्तियों के नेता आमने-सामने आए थे। एक तरफ यह मुलाकात उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी, तो दूसरी ओर इसने यह साबित कर दिया कि कभी भूगोल के कोनों में छिपा अलास्का, अब विश्व राजनीति के नक्शे पर चमक उठा है।

बर्फीली वादियों से लेकर प्राकृतिक संपदा तक, क्यों है दुनिया में मशहूर अलास्का अमेरिका का राज्य अलास्का हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात के कारण अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में रहा। लेकिन यह राज्य सिर्फ कूटनीति ही नहीं, बल्कि अपनी भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक संसाधनों और अद्भुत खूबसूरती की वजह से भी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। अलास्का अमेरिका का सबसे बड़ा राज्य है, जो अपनी बर्फ़ीली वादियों, ग्लेशियरों, ज्वालामुखियों और पहाड़ी इलाकों के लिए जाना जाता है। यहां का मौसम बेहद ठंडा रहता है और साल के कई महीने बर्फ़ से ढका रहता है। यही कारण है कि इसे “द लास्ट फ्रंटियर” भी कहा जाता है। अलास्का की प्रसिद्धि का एक बड़ा कारण इसके तेल और प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार हैं। अमेरिका की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में अलास्का की अहम भूमिका है। इसके अलावा यहां सोना, मछली और अन्य खनिज संसाधन भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। पर्यटन की दृष्टि से भी अलास्का बेहद आकर्षक है। यहां हर साल लाखों पर्यटक नॉर्दर्न लाइट्स (Aurora Borealis), व्हेल देखने के लिए समुद्री तट, और विशाल नेशनल पार्क्स की सैर करने आते हैं। माउंट मैककिंले (डेनाली) जैसे पर्वत शिखर पर्वतारोहियों और साहसिक यात्रियों को आकर्षित करते हैं। इतिहास की बात करें तो अलास्का कभी रूस का हिस्सा था, जिसे 1867 में अमेरिका ने खरीदा था। यही कारण है कि यहां रूसी प्रभाव भी देखने को मिलता है। कुल मिलाकर, अलास्का सिर्फ अमेरिका का एक राज्य नहीं बल्कि प्राकृतिक सुंदरता, ऊर्जा संसाधनों और सामरिक महत्व का ऐसा केंद्र है जो पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचता है।

अलास्का में ट्रंप-पुतिन मुलाकात के दौरान सुरक्षा का रहा कड़ा पहरा अमेरिका के अलास्का राज्य में हुई अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात जहां कूटनीति के लिहाज से अहम मानी गई, वहीं सुरक्षा के मोर्चे पर इसे एक बड़ी चुनौती माना गया। दोनों महाशक्तियों के राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी के कारण अलास्का को एक किले की तरह बदल दिया गया था।
मुलाकात स्थल पर अमेरिकी सीक्रेट सर्विस ने पूरी कमान संभाली हुई थी। आसमान से लेकर ज़मीन तक सुरक्षा का अभेद जाल बिछाया गया। हवाई निगरानी के लिए फाइटर जेट्स और ड्रोन तैनात किए गए, जबकि ज़मीनी सुरक्षा में सैकड़ों कमांडो तैनात थे। मुलाकात स्थल के चारों ओर कई किलोमीटर का इलाका नो-फ्लाई जोन घोषित कर दिया गया। दूसरी ओर, रूस ने भी अपने राष्ट्रपति पुतिन की सुरक्षा में कोई कमी नहीं छोड़ी। रूसी एफएसओ के स्पेशल गार्ड्स पुतिन के साथ मौजूद रहे। उनका काफिला बख़्तरबंद गाड़ियों और अत्याधुनिक संचार प्रणालियों से लैस था। स्थानीय प्रशासन के मुताबिक, इस स्तर की सुरक्षा अलास्का में पहले कभी देखने को नहीं मिली थी। आम नागरिकों की आवाजाही पर सख्त नियंत्रण रखा गया, मीडिया को भी सुरक्षा घेरों से गुजरने के बाद ही कवरेज की अनुमति दी गई। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मुलाकात में चाहे कोई ठोस राजनीतिक समझौता न हुआ हो, लेकिन सुरक्षा इंतजामों ने यह दिखा दिया कि जब दो महाशक्तियों के राष्ट्राध्यक्ष एक जगह मौजूद होते हैं, तो पूरी दुनिया की सांसें थम जाती हैं।

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