भारत की गिरती प्रजनन दर: एक नये संकट की दस्तक

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लेखक: दीपेन्द्र कुमार चौधरी

1. विषय पढ़ने में अटपटा जरूर लगता है और इस पर अमुमन चर्चा नहीं होती और ना ही हमारा ध्यान जाता है। यह विषय है भारत में प्रजनन दर का निरन्तर कम होना। भारत, जिसे हाल ही विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश घोषित किया गया है, एक ऐसे संकट की ओर बढ़ रहा है जिसकी आहट अभी धीमी है, लेकिन परिणाम दूरगामी और गहरे होंगे। यह संकट है-गिरती प्रजनन दर। जहाँ पहले भारत में जनसंख्या विस्फोट चिन्ता का विषय था, वहीं अब भविष्य में जनसंख्या में कमी चिन्ता का विषय बन रही है। कुछ ऐसे स्थानों से तो भविष्य हेतु प्रभावी नीति बनाने की मॉग भी उठने लगी है।
2. लम्बे समय से जनसंख्या नियंत्रण भारत की नीतियों का केन्द्र रहा है, लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। आज का युवा न तो संतान चाहता है, न परिवार का बोझ । सरकारी रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों की चेतावनियाँ यह बता रही हैं कि यदि वर्तमान रूझान बना रहा, तो भारत की आबादी वर्ष 2100 तक 80 करोड़ पर सिमट सकती है जिसमें 30 से 40 करोड़ लोग वृद्ध होंगे। विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत के सामने एक नया और गंभीर संकट धीरे-धीरे दस्तक दे रहा है वह है गिरती हुई प्रजनन दर।
3. भारत में प्रजनन दर बहुत तेजी से घटकर 1.9 प्रतिशत पर आ गयी है। युनाईटेड नेशन्स और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के अनुसार जनसंख्या समान स्तर पर बनाये रखने के लिए 2.1 प्रतिशत की सब्सीटीट्यूशन रेट (प्रजनन दर) की आवश्यकता होती है। यदि यह दर 2.1 से नीचे आती है तो कुल जनसंख्या में गिरावट प्रारम्भ हो जाती है। विश्व के कई देशों में प्रजनन दर एक प्रतिशत से लेकर 1.25 या 1.5 प्रतिशत पर आ गयी है जो कि खतरनाक स्थिति को दर्शाता है। कोरिया एवं जापान में तो स्थिति अत्यन्त खराब हो गयी है, जिस कारण वहाँ तेजी से जनसंख्या घट रही है और आगामी आने वाले कुछ वर्षों में जनसंख्या की बड़ी आबादी वृद्ध लोगों की हो जायेगी। इस कारण से वर्कफोर्स तेजी से कम हो रही है। भारत में वर्तमान में युवा लोगों की जनसंख्या ज्यादा है। कुल आबादी 140 करोड़ के सापेक्ष 90 करोड़ युवा हैं (जो कार्य करने के लिए सक्षम है)। इस 90 करोड़ में से 45 करोड़ पुरुष और 45 करोड़ महिलायें हैं, परन्तु इसमें महिलाओं का योगदान केवल 20 प्रतिशत है, यॉनि प्रत्येक 5 महिलाओं में से एक महिला कार्य कर रही है। इसमें घरेलू कार्य सम्मिलित नहीं है, यॉनि प्रत्येक 5 में से 4 महिलायें जॉब एवं बिजनेस नहीं कर रही हैं। इसी प्रकार पुरुषों में प्रत्येक 5 लोगों में से 4 लोग कार्य कर रहे हैं। यदि हम इन दोनों को जोड़ते हैं तो भारत में उपलब्ध कुल वर्कफोर्स में से केवल 50 प्रतिशत लोग जॉब या बिजनेस कर रहे हैं, जिसमें इन 45 करोड़ वर्कफोर्स में से 36 करोड़ पुरुष और 9 करोड़ महिलायें हैं। दूसरे शब्दों में महिलाओं के सापेक्ष चार गुना ज्यादा पुरूष काम कर रहे हैं। भारत में केवल चार राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में प्रजनन दर 2.1 प्रतिशत से ऊपर है, जिसमें बिहार में प्रजनन उच्च स्तर 3 प्रतिशत के आसपास है और अन्य तीन राज्यों में 3.0 प्रतिशत से नीचे परन्तु 2.1 प्रतिशत से ऊपर है। भविष्य में भारत में वर्ष 2050 में प्रजनन दर वर्तमान 1.9 प्रतिशत से गिरकर 1.3 प्रतिशत पर आ जायेगी, यॉनि आगामी कुछ वर्षों में भारत की जनसंख्या में गिरावट प्रारम्भ हो जायेगी। ऐसी स्थिति में भारत में प्रजनन दर पर दबाव बनना प्रारम्भ हो चुका है और कुछ स्थानों से कुछ लोगों द्वारा मॉग की जा रही है कि प्रजनन दर बढ़ायी जाय। चीन द्वारा अपनी प्रजनन दर को नियंत्रित किया गया था और सिंगल चाइल्ड नार्म को अपनाया था, परन्तु आज चीन को इसकी कीमत अदा करनी पड़ रही है। उसकी वर्कफोर्स निरन्तर तेजी से कम हो रही है। वर्ष 2023 में कोरिया में प्रजनन दर गिरकर 0.7 प्रतिशत पर आग गयी है, और वहाँ बच्चे पैदा नहीं हो रहे हैं। इसी तरह की परिस्थिति जापान में भी देखने को मिल रही है। वहाँ पर वर्ष 2024 में मात्र 6 से 7 लाख बच्चों ने जन्म लिया, जबकि जापान की आबदी 12 करोड़ के आसपास है। जापानी लोग भी बच्चे पैदा करने में रूचि नहीं ले रहे हैं।
4. प्रजनन दर में गिरावट जब सब्सीटीट्युशन रेट 2.1 प्रतिशत से नीचे आ जाती है, तो इसे नियंत्रित करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। आज यदि हम भारत में भी देखें तो किसी भी परिवार में 4-5 बच्चे देखने को नहीं मिलते हैं और अब तो स्थिति इतनी खराब हो गयी है कि ढूंढने पर भी कुछ ही परिवार मिलेंगे, जहाँ पर मात्र दो बच्चे हैं। यदि बच्चे कम पैदा करने के बारे में जानकारी हासिल की जाये, तो लोग कहते हैं कि महँगाई बहुत है, और एक बच्चे की भी पढ़ाई-लिखाई, पालन-पोषण आदि का खर्च उठाना दूभर हो गया है। यह लागत विगत वर्षों में कई गुना ज्यादा बढ़ चुकी है। यदि इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो भारत में भी आगामी 25 से 30 वर्षों में आबादी घटना शुरू हो जायेगी और लगभग जापान एवं कोरिया जैसी स्थिति उत्पन्न हो जायेगी और वृद्धों की आबादी में तेजी से वृद्धि होगी तथा नवजवानों की आबादी कम होती जाएगी। आज भारत में 90 करोड़ लोग काम कर सकते हैं, परन्तु इसमें भी केवल 45 करोड़ ही काम कर रहे हैं। यॉनि हम 90 करोड़ वर्कफोर्स होने के बावजूद भी केवल हम आधी वर्कफोर्स का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। आज लेबर की कमी हर स्थान पर देखने को मिलती है और यदि लेबर मिलती भी है तो बहुत महँगी मिलती है। केवल आधी उपलब्ध वर्कफोर्स का ही इस्तेमाल होने के कारण अर्थव्यवस्था की रफ्तार भी प्रभावित हो रही है। इसके अलावा भारत में भी वृद्धजनों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। आज 13 से 15 करोड़ लोग वृद्ध हैं और 2050 तक इनकी संख्या में तेजी से इजाफा हो जायेगा। इसका सीधा सा मतलब है कि जनसंख्या समुदाय के लिए उनके स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा प्रणाली जैसे-पेंशन आदि का भी अतिरिक्त बोझ अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
5. गिरती प्रजनन दर के कई कारण हैं। एक प्रमुख कारण बदलते हुए परिवार एवं उसकी संरचनायें भी हैं। परिवार का आकार छोटा (न्यूक्लीयर फैमली) हो गया है। दादा-दादी, चाचा-चाची आदि अब यह लोग परिवार में नजर ही नहीं आते हैं, सब अलग रहते हैं। घर में एक बच्चा पैदा होता है तो उसे क्रेच में डाल देते हैं, जो हमारी पारम्परिक संयुक्त परिवार प्रणाली को एकदम खत्म कर रहा है। आज संयुक्त परिवार किसी छोटे कस्बे या गाँव में मौजूद हों, तो यह बड़ी बात है। आजकल के नौजवान शादी नहीं करना चाहते हैं, और यदि शादी करते भी हैं, तो इतनी देर से करते हैं कि तब तक उनकी आयु 30 से 35 वर्ष हो जाती है। कहते हैं पहले कैरियर बनाना है, कैरियर बन जाता है तो शादी करेंगे। जब कैरियर बन जाता है तो उपयुक्त लड़का-लड़की नहीं मिल पाते। यदि देरी से मिलते हैं तो तब तक उनकी आयु 30-35 या 40 वर्ष हो जाती है। इस आयु में शादी करने पर अधिकतर दम्पत्ति बच्चा पैदा नहीं कर पाते हैं। कुछ कहते हैं कि हमें बच्चा नहीं चाहिए और यह भी एक बहाना बन जाता है। इस बड़ी उम्र में काफी लोग वर्क लोड एवं स्ट्रैस के कारण अपनी प्रजनन क्षमता गव देते हैं। अध्ययन इंगित कर रहे हैं कि आई.टी.वर्ल्ड और अत्यधिक मोबाईल यूज एवं गलत लाईफ स्टाईल जीने वाले नौकारीपेशा युवकों में से 2 में से एक किसी न किसी रूप में अपने में सैक्सूवल इन्सफिसियन्सी महसूस करता है। वह अपने को वैवाहित जीवन की जिम्मेदारियाँ निभाने में अक्षम पाता है। यह स्थिति लड़के-लड़कियों के साथ एक हकीकत है। समाज में सिंगल पैरेन्ट्स फैमिली का भी नया चलन फैशन में आ गया है। बच्चे के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची एवं भाई-बहिन उसके पास नहीं होते हैं। इससे भी परिवार का सामाजिक एवं आर्थिक ताना बाना छिन्न-भिन्न हो रहा है। सगे चाचा-चाची, बुआ-फूफा, मामा-मामी, मौसा मौसी एवं भाई-बहिन के रिश्ते भी तेजी से समाप्त हो रहे हैं। इसके दुष्परिणाम यह हैं कि बिना पारिवारिक रिश्ते के, जो संयुक्त परिवार इन बच्चों को सामाजिक, वैचारिक एवं मानसिक सुरक्षा प्रदान करते आ रहे थे, बच्चा उसके अभाव में पलता बढ़ता है। इससे बच्चे को समाज में एडजैस्ट होने में एवं परिवार में अकेले होने के कारण जीवन की कठिनाईयों का सामना करने में मुश्किल आती है। वर्ष 2050 में भारत की प्रजनन दर वर्तमान 1.9 से घटकर 1.29 पर आ जायेगी। यह स्थिति गाँव व शहर दोनों जगह समान रूप में देखने को मिलेगी। युवा आबादी जो हमारे आर्थिक विकास का स्तम्भ रही है, अब खतरे में आती जा रही है। अधिकतर परिवारों में बच्चे ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे।
6. यद्यपि आज भी भारत में सबसे ज्यादा युवा हैं, परन्तु इस वर्क फोर्स का केवल 50 प्रतिशत ही काम कर रहे हैं। कुछ काम नहीं करना चाहते हैं, और जो अधिकतर युवा काम कर भी रहे हैं तो उनमें आवश्यक स्किलसैट की कमी है, जिसके कारण उत्पादकता में कमी (Low Productivity) है। जीवन जीने की लागत वर्तमान में कई गुना बढ़ गयी है और इसी प्रकार बच्चों की पढ़ाई एवं स्वास्थ्य सुविधायें आदि भी कई गुना महँगे हो गये हैं। इसके साथ-साथ जीवन की अनिश्चितायें भी बढ़ गयी हैं। यह कारण कहीं न कहीं युवा लोगों को माता-पिता बनने से रोक रहे हैं। माता-पिता अपने जीवनयापन और बच्चों के लालन-पालन, पढ़ाई, स्वास्थ्य आदि के बीच संतुलन नहीं बना पा रहे हैं और बच्चे पैदा करने के प्रति अरुचि प्रदर्शित कर रहे हैं।
7. बच्चों के लालन-पालन में दो बड़े खर्च हैं शिक्षा और स्वास्थ्य। विगत वर्षों में इन खर्चों में कई गुना बढ़ोत्तरी हो गयी है। महँगाई के कारण माता-पिता अपना एवं बच्चों के जीवनयापन करने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में सरकार बच्चों की अच्छी पढ़ाई-लिखाई एवं अच्छे निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाओं का इंतजाम करके इस गिरती प्रजनन दर को रोक
सकती है। माता-पिता का विश्वास रहेगा कि उनके बच्चों के लालन-पालन और देखभाल के लिए सरकार उनके साथ है। कुछ इसी प्रकार के सरकारी इन्सेंटिव जापान, कोरिया एवं अन्य देशों में दिये जा रहे हैं। यद्यपि इसे लागू करवा पाना उतना आसान भी नहीं होगा, जब तक दम्पत्ति अपना कुल धर्म ना निभायें। एक विकल्प यह भी हो सकता है कि हम “मात्रा” पर न जाकर “गुणवत्ता पर भी अपना ध्यान केन्द्रित करें। सरकार यह भी कर सकती है कि विश्व के समस्त “अप्रवासी भारतीयों (NRIS) को भारत की रेगुलर नागरिकता प्रदान कर दी जॉय और उन्हें वह समस्त सुविधाएं जो भारतीय नागरिक को प्राप्त होती हैं, उन्हें भी उपलब्ध करा दी जायें। इससे न केवल हाइली क्वालीफाइड, टैक्नीकली एजुकेटेड प्रोडक्टिव आबादी मिलेगी, बल्कि इसके साथ-साथ आर्थिक रूप से मजबूत लोगों का भी समावेश आबादी में किया जा सकता है।

आज यदि हमने जनसंख्या स्थिरता को लेकर गंभीर मंथन और रणनीतिक योजना नहीं बनायी तो भारत एक बुजुर्ग राष्ट्र में तब्दील हो जायेगा। संतान बोझ नहीं बल्कि विकास की धुरी है। सरकार, समाज, नीति निर्माता और नागरिक सभी को मिलकर समझना होगा कि अगली पीड़ी को खोकर हम केवल जनसंख्या नहीं बल्कि अपना भविष्य भी खो देंगे। यदि हम
आज नहीं चेते, तो कल केवल पछतावा शेष रहेगा। सामाजिक अभियान और नीति निर्माण के माध्यम से पारम्परिक संयुक्त परिवार को फिर से प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है और अन्य आवश्यक उपाय जो संभव हो सकें, को भी अपनाये जाने की जरूरत है।

(दीपेन्द्र कुमार चौधरी, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, समसामयिक विषयों के लेखक एवं विचारक, जो वर्तमान में सचिव, आयुष एवं आयुष शिक्षा, सैनिक कल्याण एवं सचिवालय प्रशासन विभाग, उत्तराखण्ड शासन में कार्यरत हैं)

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