अब वोटर बनने के लिए नागरिकता का शिगूफा!

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अब तक भारत में पहचान और नागरिकता साबित करने के लिए आधार कार्ड और पैन कार्ड को सबसे जरूरी दस्तावेज़ माना जाता था। लेकिन हाल ही में सरकार की नई घोषणा ने लोगों को चौंका दिया है। अब आधार और पैन की जगह दो नए दस्तावेजों को नागरिकता प्रमाण के तौर पर मान्यता दी जा रही है। यह बदलाव खासतौर पर उन लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है जो आधार या पैन कार्ड नही बनवा पाए है।इन दो दस्तावेजों में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में नाम व नागरिकता प्रमाणपत्र को अब पहचान और नागरिकता के पुख्ता सबूत के रूप में स्वीकार किया जाएगा, खासकर सरकारी योजनाओं, पासपोर्ट आवेदन, नौकरी या बैंक खाता खोलने जैसे मामलों में ये दस्तावेज काम आएंगे। यदि आपका नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में  में नहीं है, तब आप नागरिकता प्रमाणपत्र के माध्यम से अपनी नागरिकता साबित कर सकते हैं। यह प्रमाणपत्र केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाता है।नागरिकता प्रमाणपत्र लेने के लिए जरूरी दस्तावेज़ में जन्म प्रमाणपत्र या स्कूल का प्रमाणपत्र, साथ ही माता-पिता की नागरिकता से जुड़े दस्तावेज़, इसके लिए सन 1950 से पहले का कोई भी निवास प्रमाणपत्र जैसे जमीन का रिकॉर्ड, राशन कार्ड आदि जिसे शपथ पत्र व दो गवाहों द्वारा सिद्ध किया जा सकता है। दरअसल आधार कार्ड एक पहचान पत्र है, लेकिन यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है। वही पैन कार्ड मुख्यतः टैक्स से जुड़ा दस्तावेज़ है, जो नागरिकता को प्रमाणित नही करता। जिन लोगो का आधार कार्ड या पैन कार्ड में नाम, जन्मतिथि या पता गलत है या जो सन 1950 से पहले के प्रवासी हैं या जिनके पूर्वज दूसरे देश से आए थे। या जो शरणार्थी है या फिर सीमावर्ती क्षेत्रों में रहते हैं और जिनका राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में नाम नहीं है और अब तक कोई वैध नागरिकता प्रमाणपत्र जिन्होंने नही बनवाया। उन सभी को तुरंत संबंधित दस्तावेज़ इकट्ठा करके अपना नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में नाम जुड़वाना चाहिए या नागरिकता प्रमाण पत्र प्राप्त करना चाहिए। इसके लिए हर राज्य में नागरिकता प्रमाणपत्र केंद्र बनाए जा रहे हैं। एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया फिर से शुरू की जा रही है, जिसके लिएडिजिटल पोर्टल तैयार किया गया है, जहां से फॉर्म भरे जा सकते हैं। स्थानीय निकायों को निर्देश दिए गए हैं कि वे लोगों को उक्त दस्तावेज़ तैयार करने में मदद करें। सरकार ने अब तक भारत के प्रत्येक नागरिक को आधार कार्ड देने की मुहिम तो चलाई लेकिन नागरिकता प्रमाण पत्र के बारे में कभी नही सोचा गया। भले ही भाजपा ने सन 2014 के बाद अभी तक ज्यादातर चुनाव बिना किसी डर के जीते है लेकिन जब तीसरे आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 400 पार का नारा जनता ने नकार दिया तो भाजपा को सत्ता में बने रहने की फिक्र हुई और भाजपा सरकार के कहने पर पहली बार केंद्रीय चुनाव आयोग ने बिहार से मतदाताओं की नागरिकता जांचने की मुहिम शुरु की, जो अब सुप्रीम कोर्ट के सुनवाई दायरे में पहुंच गई है। यदि ये मुहिम भारत सरकार का गृह मंत्रालय उसी तर्ज पर चलाता जैसे कांग्रेस सरकार ने आधार पहचान पत्र के लिए देशव्यापी मुहिम चलाई थी, तब हम सब इसका समर्थन करते, लेकिन दुनिया के तमाम देशों में जन्मजात और अनुवांशिक नागरिकता प्रचलित है इसलिए सभी के पास अलग से कोई नागरिकता प्रमाण पत्र नही होता। नागरिकता प्रमाणपत्र उन्ही प्रदेशियों के लिए जारी किया जाता है जो इसके लिए बाकायदा आवेदन करते हैं। भारत में आमतौर से कोई भी शासकीय सुविधा या अधिकार पाने के लिए आयकर प्रमाण पत्र से ज्यादा महत्व आधार पहचान पत्र को दी जा रही है। ज्यादातर के पास वंशानुगत या जन्म आधारित नागरिकता है लेकिन इसका कोई प्रमाण पत्र भी किसी के पास नहीं है। हालांकि पासपोर्ट के आधार पर पूरी दुनिया देश के नागरिकों को भारतीय मानकर अपने यहां आने-जाने देती है, कारोबार करने देती है। लेकिन पासपोर्ट को अपने देश में नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं माना जाता। यदि विदेशी सरकारें भी भारत सरकार की तरह पासपोर्ट के आधार पर हमें भारतीय मानने से इंकार कर दें तो हम कहीं आ जा भी नही सकेंगे। यद्यपि पासपोर्ट जारी ही तब किया जाता है जब जन्म का, आवास का, संपत्ति का और पुलिस द्वारा चरित्र का सघन सत्यापन करा लिया जाता है, यही प्रक्रिया मतदाता पहचान पत्र जारी करने मे अपनाई जाती है। ऐसे में यदि बिहार या देश के किसी भी राज्य में जारी मतदाता पहचान पत्रों को संदिग्ध माना जा रहा है तो इसके लिए दोषी स्वयं केंद्रीय चुनाव आयोग है। चुनाव आयोग का बीएलओ से लेकर जिला स्तर का अधिकारी इस प्रक्रिया में दोषी है। क्योंकि उन्होंने ही एक लंबी प्रक्रिया के बाद आधार कार्ड आदि दस्तावेज बनवाये है। नागरिकता प्रमाण पत्र मुख्य रूप से उन लोगों को जारी किया जाता है जो जन्म, वंश, पंजीकरण, प्राकृतिकरण या क्षेत्रीय समावेशन के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करते हैं, नागरिकता अधिनियम, 1955 के मुताबिक, भारत में जन्मे अधिकांश लोग स्वतः नागरिक माने जाते हैं, और उनके लिए नागरिकता का प्रमाण आमतौर पर जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, या अन्य दस्तावेजों जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी आदि के माध्यम से स्थापित किया जाता है। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाकर मौजूदा सरकार ने असम में एन आर सी प्रक्रिया के तहत नागरिकता सत्यापन करने का अभियान चलाया था जिसमें लगभग 1.9 मिलियन लोग नागरिकता साबित करने में असफल रहे है, लेकिन इनमें से किसी को भी देश निकाला नहीं दिया गया है। यही सब अब बिहार में बिना एन आर सी के करने की कोशिश की जा रही है। जिससे साफ है कि बिहार से भी किसी को नहीं निकाला जाएगा, केवल उनका मताधिकार छीना जाएगा ताकि वे भाजपा को न हरा सकें।वास्तविकता यह है कि भारत की कुल जनसंख्या लगभग 140 करोड़ है, इनमें से अधिकांश लोग जन्म के आधार पर स्वतः भारतीय नागरिक हैं।केवल उन लोगों को नागरिकता प्रमाण पत्र की आवश्यकता पड़ती है जो गैर-नागरिक पृष्ठभूमि से आते हैं या जिन्होंने पंजीकरण/प्राकृतिकरण के माध्यम से नागरिकता प्राप्त की है। ऐसे में आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि को दरकिनार कर नागरिक प्रमाण पत्र को आधार बनाकर वोटर तय करना आज के समय मे बेमानी ही कहा जायेगा। (लेखक ज्वलंत मुद्दों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार है)

(डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)

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